जौ प्रभु , मेरे दोष बिचारैं।
करि अपराध अनेक जनम लौं, नख-सिख भरो बिकारैं।
पुहुमि पत्र करि सिंधु मस नौ गिरि-मसि कौं लै डारैं।
सुर-तरुवर की साख लेखिनी, लिखत सारदा हारैं।
पतित उधारन बिरद बुलावैं, चारौं बेद पुकारैं।
सूर स्याम हौं पतित सिरोमनि, तारि सकैं तौ तारैं।।183।।
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