हमारी तुमकौं लाज हरी !
जानत हौ प्रभु, अंतरजामी, जो मोहि माँझ परी।
अपनैं औगुन कहँ लौं बरनौं, पल पल धरी धरी।
अति प्रपंच की मोट बाँधिकै अपनैं सीस धरी।
खेवनहार न खेवट मेरैं, अब मो नाव अरी।
सूरदास प्रभु, तब चरननि की आस लागि उबरी।।।184।।
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