कुसुमित वन देखन चलहु आज। जहँ प्रगट भयौ रितु-रंग-राज।।
अति बिबिध कुसुम परिमल बहाइ। वन सुवा सहित पंचम सुहाइ।।
केकी बोलत पिक-सुर-सनेहि। जुवती मन अति आनंद देहि।।
श्री मदन मोहन सुंदरता पुंज। श्री राधा सँग राजत निकुंज।।
गावै सुरगन दंपतिबिलास। तहँ सदा रहै मन "सूरदास"।।2855।।