सुंदर वर सँग ललना बिहरति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बसंत


सुंदर वर सँग ललना बिहरति, बसँत सरस ऋतु आई।
लै लै छरी कुमारि राधिका, कमलनैन पर धाई।।
सरिता सीतल बहति मद गति, रवि उत्तर दिसि आयौ।
अति रस भरी कोकिला बोली, बिरहिनि बिरह जगायौ।।
द्वादस बन रतनारे देखियत, चहुँ दिसि टेसू फूले।
मौरे अँबुआ अरु द्रुम बेली, मधुकर परिमल भूले।।
इत श्री राधा उत श्री गिरिधर, इत गोपी उत ग्वाल।
खेलत फाग रसिक ब्रजबनिता, सुंदर स्याम तमाल।।
चोवा चंदन अबिर कुमकुमा, छिरकत भरि पिचकारी।
उड़त गुलाल अबीर, जोति रवि दिसि दीपक उँजियारी।।
ताल मृदंग बीन, बाँसुरि डफ, गावत गीत सुहाए।
रसिक गुपाल नवल-ब्रज-बनिता, निकसि चौहटै आए।।
झूमि झूमि झूमक सब गावतिं, बोलतिं मधुरी बानी।
देतिं परस्पर गारि मुदित मन, तरुनी बाल सयानी।।
सुरपुर नरपुर नागलोक, जलथल क्रीड़ासुख पावै।
प्रथम-बसंत-पंचमी-लीला, 'सूरदास' जस गावै।।2854।।

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