पिय प्यारी खेलै जमुन तीर। भरि केसरि कुमकुम अरु अबीर।।
घसि मृगमद चंदन अरु गुलाल। रँग भीने अरगज वस्त्र माल।।
कूजत कोकिल कल हंस मोर। ललितादिक स्यामा एक ओर।।
वृन्दादिक मोहन लई जोर। बाजै ताल मृदंग रबाब घोर।।
प्रभु हँसि कै गेदुक दई चलाइ। मुख पट दै राधा गई बचाइ।।
ललिता पट मोहन गह्यौ धाइ। पीतांबर मुरली लई छिंड़ाइ।।
हौ सपथ करौं छाँड़ी न तोहिं। स्यामा जु आज्ञा दई मोहिं।।
इक निज सहचरि आई बसीठि। सुनि री ललिता तू भई ढीठि।।
पट छाँड़ि दियौ तब नव किसोर। छवि रीझि 'सूर' तृन दियौ तोर।।2856।।