हरि-मुख सुनत वेनु रसाल -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग नट


हरि-मुख सुनत वेनु रसाल।
बिरह ब्याकुल भईं बाला, चलीं जहँ गोपाल।
पय दुहावत तजि चलीं कोउ, रह्यौ धीरज नाहि।।
एक दोहनी दूध जावन कौं, सिरावत जाहिं।।
एक उफनत ही चलीं उठि, घरयौ नाहिं उतारि।।
एक जेंवन करत त्याग्यौ, चढ़ी चूल्हैं दारि।।
एक भोजन करि संपूरन, गई वैसेंहिं त्यागि।।
सूर-प्रभु कैं पास तुरतहिं, मन गयौ उठि भागि।।995।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः