हरि-मुख सुनत वेनु रसाल।
बिरह ब्याकुल भईं बाला, चलीं जहँ गोपाल।
पय दुहावत तजि चलीं कोउ, रह्यौ धीरज नाहि।।
एक दोहनी दूध जावन कौं, सिरावत जाहिं।।
एक उफनत ही चलीं उठि, घरयौ नाहिं उतारि।।
एक जेंवन करत त्याग्यौ, चढ़ी चूल्हैं दारि।।
एक भोजन करि संपूरन, गई वैसेंहिं त्यागि।।
सूर-प्रभु कैं पास तुरतहिं, मन गयौ उठि भागि।।995।।