हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 35 श्लोक 27-43

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पञ्चत्रिंश अध्याय: श्लोक 27-43 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्तर रात बीतने पर प्रात:काल सब राजा उठे और युद्ध की लालसा से मथुरापुरी पर चढ़ाई करने के लिये एकत्र होने लगे। यमुना के किनारे एकत्र होकर बैठे। युद्ध के शुभ अवसर के लिये उत्सुक हो आपस में मन्त्रणा करने लगे। सेना सहित उन नरेशों की तुमुल ध्वनि प्रलयकाल में मर्यादा को तोड़कर बहने वाले समुद्रों की भयंकर गर्जना के समान सुनाई देती थी। उन राजाओं के छड़ीदार बूढ़े सिपाही चोगा और पगड़ी धारण किये हुए तथा हाथ में बेंत लिये राजा से यह कहते हुए विचरने लगे कि ‘सब लोग मौन रहें। कोई एक शब्द भी न बोलें।' उस समय नीरव और निश्चल हुए उस सैन्य समूह का रूप जिसके मत्स्य और ग्राह विलीन हो गये हों उस शब्दहीन शान्त महासागर के समान प्रतीत होता था। उस सैन्य-समुद्र के मानो योगबल से सहसा नीरव और निश्चल हो जाने पर बृहस्पति के सामने नीतिमान जरासंध ने यह महत्त्व‍पूर्ण बात कही- ‘राजाओं की सेनाऐं शीघ्र आक्रमण करें और इस मथुरा नगरी को सब ओर से सैनिक-समूहों द्वारा घेर लें। पत्थरों के गोले बरसाने वाले यन्त्र लगा दिये जायें। क्षेपणीय (गोफना या ढेलवांस) तथा मुद्गर संभाल लिये जायें। सारी भूमि समतल कर दी जाय और उसे जलराशियों से आप्लावित किया जाय। धनुषों को ऊपर उठा लेना चाहिये, प्रासों और तोमरों को भी हाथ में ले लिया जाय। टंक आदि के द्वारा तथा खनित्रों से इस पुरी को तुरंत ही विदीर्ण कर दिया जाय। युद्ध की प्रणाली को जानने वाले नरेशों को उसके समीप ही यथा-स्थान खड़ा किया जाय।

आज से मेरे सैनिकों द्वारा मथुरापुरी पर घेरा डाल दिया जाय और उसे तब तक चालू रखा जाय, जब तक कि मैं युद्ध में इन दोनों ग्वालों वसुदेवपुत्र संकर्षण और कृष्ण को अपने तीखे बाणों द्वारा मार न डालूं। उस समय तक आकाश को भी बाण समूहों से इस तरह रूंध दिया जाय, जिससे पक्षी भी उड़कर बाहर न जा सके। मेरा अनुशासन मानकर समस्त भूपाल मथुरापुरी के निकटवर्ती भू-भागों में खड़े रहें और जब जहाँ अवकाश मिल जाय, तब तहां शीघ्र ही पुरी पर चढ़ाई कर दें। मद्रराज (शल्य), कलिंगराज श्रुतायु, चेकितान, बाह्कि, काश्‍मीरराज गोनर्द, करूषराज दन्तवक्त्र तथा पर्वतीय प्रदेश के रोग रहित किन्नरराज द्रुम- ये शीघ्र ही मथुरापुरी के पश्चिम द्वार को रोक लें। पूरुवंशी वेणुदारि, विदर्भ देशीय सोमक, भोजों के अधिपित रुक्मी, मालवा के राजा सूर्याक्ष, अवन्ती के राजकुमार विन्द और अनुविन्द, पराक्रमी दन्तवक्त्र, छागलि, पुरमित्र, राजा विराट, कुरुवंशी मालव, शतधन्वा, विदूरथ, भूरिश्रवा, त्रिगर्त, बाण और पञ्चनद- ये दुर्ग का आक्रमण सह सकने वाले नरेश मथुरा नगर के उत्तर द्वार पर चढ़ाई करके शत्रुओं को कुचल डालें। इनका गौरव वज्र के तुल्य है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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