हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 58 श्लोक 1-14

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टपश्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

द्वारकापुरी का विश्वकर्मा द्वारा निर्माण, निधिपति शख और सुधर्मा सभा का आनयन, श्रीकृष्ण द्वारा सुव्यवस्थापूर्वक वहाँ यादवों को बसाना तथा बलराम जी का रेवती के साथ विवाह

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेयज! तदनन्तर, निर्मल प्रभातकाल में सूर्योदय होने पर भगवान श्रीकृष्ण नैत्यिक जप एवं स्वा‍ध्याय आदि पूर्ण करके वन के भीतर बैठे तत्पश्चात दुर्ग के लिये उपयुक्त स्थान देखने की इच्छा से वे उस प्रदेश में घूमने लगे। उस समय कुल के बडे़-बूढे़ यदुवंशी भी यदुनन्दन श्रीकृष्ण के पास आ गये थे। श्रीकृष्ण ने रोहिणी नक्षत्र में श्रेष्ठ शनिवार को उत्तम ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराकर विपुल पुण्याहघोष के साथ दुर्ग निर्माण कार्य आरम्भ कर दिया।

तत्पश्चात वक्ताओं में श्रेष्ठ केशिहन्ता कमलनयन श्रीकृष्ण ने जैसे वृत्रासुर के वैरी इन्द्र देवताओं से कोई बात कहते हैं, उसी प्रकार यादवों से कहा- 'यादवों! मैंने देवसदन के समान इस भूमि का निर्माण कर लिया है। आप सब लोग देखें। मैंने इसका नाम भी निश्चित कर लिया है, जिससे इसकी ख्याति होगी। मेरे द्वारा इस भूतल पर निर्मित हुई यह पुरी द्वारवती के नाम से प्रसिद्ध होगी तथा इन्द्र की अमरावती के समान रमणीय दिखायी देगी। मैं इस पुरी के वे ही चिह्न, वे ही मन्दिर, वैसे ही चौराहे, उसी तरह की सड़कें और वैसे ही उत्तम अन्त:पुर बनवाऊँगा, जैसे कि अमरावती में हैं। जैसे देवता अमरावती में आनन्द भोगते हैं, उसी प्रकार उग्रसेन आदि आप लोग भी निश्चित हो अपने शत्रुओं को पीड़ा देते हुए इस पुरी में सानन्द निवास करें।

घरों के शिलान्यास की सामग्रियां संग्रह करके लायी जायँ। तिराहों और चौराहों की कल्पना की जाय। सड़कों के लिये भूमि का माप किया जाय तथा राजमहल में जाने का जो मार्ग है, उसके लिये भी भूमि नापी जाय। गृह निर्माण के कार्य में लगे रहने वाले जो सुयोग्य एवं श्रेष्ठ शिल्पी हों, उन्हें यहाँ भेजा जाय और जगह-जगह मजदूरी का काम करने वाले मजदूरों को (कारीगरों के साथ) काम करने के लिये लगा दिया जाय।'

भगवान श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर सब यादव हर्ष से उल्लसित हो गृह निर्माण के लिये उपयोगी सामग्री का संग्रह करने में लग गये। उन्होंने सभी घरों के लिये उनकी स्थिति के अनुसार शिलान्यास के निमित्त आवश्यक वस्तुओं का संग्रह किया। महाराज! तदनन्तर श्रेष्ठ यादवों ने एक पवित्र दिन को ब्राह्मणों का पूजन करके हाथों में सूत्र लेकर भूमि को नापना आरम्भ किया। वे वास्तु देवता के पूजन आदि कर्म भी विधिपूर्वक सम्पन्न कराने लगे। तत्पश्चात परमबुद्धिमान भगवान श्रीकृष्ण ने वहाँ थवइयों से कहा- 'कारीगरों! तुम लोग यहाँ हम यादवों के लिये सुन्दर ढंग से एक मन्दिर का निर्माण करो, जिसमें इष्ट देवता की उत्तम विधि से स्थापना की जाए। यहाँ का मार्ग और चौराहा पृथक रहना चाहिये।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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