हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 100 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 100 श्लोक 1-5

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वैशम्पायन उवाच

तत: सम्पूज्यं गरुडं वासुदेवोऽनुमान्य च।
सखिवच्चो:पगृह्यैनमनुजज्ञे गृहं प्रति।।1।।
 
सोऽनुज्ञातो हि सत्कृृत्ये प्रणम्या च जनार्दनम्।
ऊर्श्वमाचक्रमे पक्षी यथेष्टं गगनेचर:।।2।।

स पक्षवातसंक्षुब्धं समुद्रं मकरालयम्।
कृत्वा वेगेन महता ययौ पूर्वमहोदधिम्।।3।।

कृत्याकाले उपस्थास्य इत्युुक्वार गरुडे गते।
कृष्णोव ददर्श पितरं वृद्धमानकदुन्दुतभिम्।।4।।

उग्रसेनं च राजानं बलदेवं स सात्यकिम्।
काश्यंन सान्दीपनिं चैव ब्रह्मगार्ग्यं तथैव च।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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