हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 119 श्लोक 1-19

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

चित्रलेखा और नारदजी का संवाद, चित्रलेखा का नारदजी से तामसी विद्या ग्रहण कर अनिरुद्ध को शोणितपुर ले जाना, उषा और अनिरुद्ध का गान्धर्व-विवाह, अनिरुद्ध का बाणासुर के सैनिकों तथा बाणासुर के साथ युद्ध, उनका नागपाश में बँधकर बंदी होना तथा नारदजी का द्वारका जाना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर द्वारकापुरी के पास पहुँचकर चित्रलेखा एक घर के पास घड़ी हो गयी और अनिरुद्ध के पास संदेश भेजने के लिये कोई युक्ति सोचने लगी। बुद्धि से बोद्धव्य विषय का जो निश्चय होता है, उसी का विचार करती हुई चित्रलेखा ने वहाँ नारद मुनि को देखा, जो समुद्र के जल में ध्यान लगाये बैठे थे। उन्हें देखकर चित्रलेखा के नेत्र हर्ष से खिल उठे। वह उनके पास गयी और उन्‍हें प्रणाम करके वहीं नीचे मुँह किये खड़ी हो गयी। नारद जी ने आशीर्वाद देकर चित्रलेखा से कहा- यहाँ किसलिये आयी हो, यह मैं ठीक-ठीक सुनना चाहता हूँ। तब चित्रलेखा दोनों हाथ जोड़कर लोकपूजित दिव्य देवर्षि नारद से इस प्रकार बोली- ‘भगवन! मेरी बात सुनिये। मैं दूती होकर यहाँ आयी हूँ। मुने! मैं अनिरुद्ध को यहाँ से ले जाना चाहती हूँ, किसलिये, यह मुझसे सुनिये। शोणितपुर नगर में जो बाणानाम से प्रसिद्ध महान असुर है, उसके एक सुन्‍दर अंग वाली कन्‍या है, जो उषा के नाम से विख्‍यात है। भगवन! प्रद्युम्नकुमार पुरुषोत्‍तम अनिरुद्ध के प्रति अनुरक्‍त है। देवी पार्वती के वरदान के अनुसार अनिरुद्ध ही उसके पति नियत हुए हैं। मैं उन्‍हीं को ले जाने के लिये आयी हूँ। मेरे उद्देश्‍य की सिद्धि‍ का कोई उपाय कीजिये। महामुने! जब मैं अनिरुद्ध को शोणितपुर नगर में पहुँचा दूँ, तब आप कमलनयन भगवान श्रीकृष्‍ण को यह समाधान बतायें। अवश्‍य ही भगवान श्रीकृष्‍ण के साथ बाणासुर का महान युद्ध होगा। वह महान असुर समरांगण में दिव्‍य शक्ति से सम्‍पन्‍न होता है। वह महान असुर जब सहस्र भुजाओं से युक्‍त होकर युद्धभूमि में पदार्पण करेगा, उस समय अनिरुद्ध उसे नहीं जीत सकते, महाबाहु श्रीकृष्‍ण ही उस पर विजय पा सकते हैं। भगवन! मैं आपके निकट जिस अभिप्राय से आयी हूँ, वह यह है कि कमलनयन भगवान श्रीकृष्‍ण को यह बात कैसे बतायी जाए?

भगवन! आपकी कृपा से मुझे भगवान श्रीकृष्ण से कोई भय नहीं है, क्योंकि वे तत्त्वार्थदर्शी हैं। परंतु अनिरुद्ध का अपहरण कैसे किया जाय? महाबाहु श्रीकृष्ण यदि क्रुद्ध हो जायँ तो समस्त त्रिलोकी को भी दग्‍ध कर सकते हैं। पौत्रशोक से संतप्त होकर अपने शाप से मुझे जला सकते हैं। अत: भगवन! इस विषय में आप ही कोई ऐसा उपाय सोचिये, जिससे उषा अपने प्रियतम को प्राप्त कर ले और मुझे भी कोई भय न हो।' उसके ऐसा कहने पर नारद मुनि ने चित्रलेखा से यह शुभ वचन कहा- 'चित्रलेखा! तुम डरो मत! मैं भय के निवारण का उपाय बताता हूँ, सुनो। शुचिस्मिते! तुम जब अनिरुद्ध को ले जाओ और उनका कन्या के महत में प्रवेश हो जाय, तब यदि युद्ध होने की सम्भावना हो तो मुझे स्मरण करना। मनोरमे! युद्ध देखने के लिये मुझे बड़ी अभिलाषा रहती है और उसे देखकर बहुत प्रसन्नता होती है। साथ ही युद्ध कराने की मेरी प्रवृति और दृढ़ होती है। तुम मुझसे तामसी विद्या ग्रहण कर लो, जो सब लोगों को मोह में डालने वाली है। देवि! इस विद्या की सिद्धि के लिये जो पुरश्चरण आदि कार्य करने पड़ते हैं, वे सब मैंने ही कर दिये हैं। इस प्रकार यह सिद्ध की हुई विद्या मैं तुम्हें दे रहा हूँ।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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