हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 118 श्लोक 17-34

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-34 का हिन्दी अनुवाद

उसे अश्रुपूर्ण नेत्रों से अनाथ की भाँति रोती देख सारी सखियाँ घबरायी हुई-सी वहाँ आ गयीं और इस प्रकार कहने लगीं- 'देवि! दुष्ट हृदय से यदि शुभ या अशुभकर्म किया जाता है तो उसका कोई अनिष्टकारी फल होता है, परंतु सुभ्र! शुभे! तुम्हारे मन में तो कभी कोई दोष आया नहीं है। भामिनि! कल्याणि! यदि दैव-संयोग से स्वप्न में किसी पुरुष ने बलात तुम्हारा उपभोग कर लिया है तो इससे तुम्हारे कौमार-व्रत का लोप नहीं हुआ है। देवि! तुम्हारे इस व्यभिचार से कोई अपराध नहीं बना है। सुन्दरि! मर्त्यलोक में स्वप्नवस्था में किये गये किसी अशुभ कर्म का दोष नहीं लगता है। देवि! धर्मज्ञ ब्रह्मर्षि प्राय: ऐसा ही कहते हैं जो नारी मन, वाणी तथा विशेषत: क्रिया-इन तीनों से दूषित है, उसी को विद्वान् पुरुष ‘पापिनी’ कहते हैं। भीरु! तुम्हारा मन तो सदा ही स्थिर है, वह कभी चंचल होता नहीं देखा जाता है। तुम नियमपूर्वक ब्रह्मचर्य पालन में तत्पर रहकर भी दोषों से दूषित कैसे हो सकती हो। तुम्हारा भाव शुद्ध है, तुम मन को वश में रखने वाली हो, सती-साध्वी हो। फिर भी यदि सुप्तावस्था में तुम इस दशा को पहुँच गयी तो इससे तुम्हारे धर्म का लोप नहीं होता है। जिस स्त्री का पहले मन दूषित होता है, फिर वह क्रिया द्वारा दोष का सम्पादन करती है, उसी को असती (कुलटा) कहते हैं। भामिनि! तुम तो सती हो। तुम उत्तम कुल में उत्पन्न, मनोहर रूप से सम्पन्न, संतोष आदि नियमों का पालन करने वाली तथा ब्रह्मचारिणी होकर भी इस दशा को पहुँचा दी गयी, यह देखकर यही कहना पड़ता है कि काल दुर्लंघ्य है। वह जिसको जिस अवस्था में चाहे डाल सकता है।'

सखियों के ऐसा कहने पर भी उषा रोती ही रही। उसके नेत्र आँसुओं से भरे ही रहे। तब कुम्भाण्ड की पुत्री चित्रलेखा ने यह उत्तम बात कही- 'विशाललोचने! यह शोक छोड़ो। वरानने! तुम सर्वथा पापरहित हो। मैंने जो यह बात सुन रखी है, उसे यथार्थ रूप से बताती हूँ, सुनो। उषे! भामिनि! देवाधिदेव महादेव जी के समीप उस दिन जब तुम पति का चिन्तन कर रही थी, उस समय देवी पार्वती ने तुम से जो बात कही थी, उसे याद करो। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को रात्रि के समय अट्टालिका पर सोयी हुई तुझे तेरे रोते रहने पर भी जो पुरुष स्वप्न में अपनी स्त्री बना लेगा, वह शत्रुसूदन शूरवीर पुरुष ही तेरा पति होगा। हर्ष में भरी हुई पार्वती देवी ने यह तुम्हारे मन के अनुरूप बात कही थी। पार्वती जी ने जो कह दिया, वह वचन कभी भी मिथ्या नहीं हो सकता। अत: चन्द्रमुखि! तुम इस घटना के लिये यह अत्यन्त रोदन क्यों कर रही हो।' चित्रलेखा के ऐसा कहने पर पार्वती देवी के वचन का स्मरण करके वह असुर बाला शुभलोचना बाणपुत्री उषा शोक रहित हो गयी। उषा बोली- भामिनि! जब महादेव जी क्रीड़ा में तत्पर थे, उस समय देवी पार्वती ने जो बात कही थी, वह मुझे याद आ रही है। उन्होंने जो कुछ कहा था, वह सब पूर्णरूप से इस अट्टालिका के भीतर मैंने अनुभव किया है। यदि भगवान विश्वनाथ की भार्या पार्वती देवी ने इसी पुरुष को मुझे पति रूप में प्रदान किया है तो उसका पता कैसे लगेगा? इसके लिये कोई उपाय करो।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः