हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 36 श्लोक 1-14

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षटत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

वृष्णिवंशियों तथा जरासंध के सैनिकों का युद्ध, बलराम और जरासंध का गदा युद्ध तथा जरासंध का पराजित होकर पलायन करना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर जरासंध के महावतों और अनुगामी नरेशों के साथ वृष्णिवंशियों के कई बड़े-बड़े युद्ध हुए भरतश्रेष्ठ! रुक्मी के साथ वासुदेव श्रीकृष्ण का, भीष्मक के साथ आहुक (उग्रसेन) का, क्रथ के साथ वसुदेव का, बभ्रु (अक्रूर) के साथ कैशिक का, गद के साथ चेदिराज शिशुपाल का, शंकु के साथ दन्तवक्त्र का तथा अन्य सैनिकों के साथ वृष्णिकुल के महामना वीर नरेशों का, सारांश यह कि उभय पक्ष के सैनिकों का प्रतिद्वन्द्वी सैनिकों के साथ दारुण द्वन्द्व युद्ध होने लगा, जो सत्ताईस दिनों तक चलता रहा।

नरेश्वर! हाथियों से हाथी, घोड़ों से घोड़े, पैदलों से पैदल और रथों से रथ मिश्रित हो गये और इस प्रकार ताल-मेल कर सभी योद्धा विपक्षियों के साथ युद्ध करने लगे राजा जरासंध का बलराम जी के साथ उसी प्रकार दारुण एवं रोमाञ्चकारी संघर्ष हुआ, जैसा वृत्रासुर के साथ देवराज इन्द्र का हुआ था। रुक्मिणी के साथ भविष्य में होने वाले सम्बन्ध को दृष्टि में रखकर श्रीकृष्ण ने रुक्मी को नहीं मारा, उसकी ओर से आने वाले अग्नि और सूर्य की किरणों के समान तेजस्वी तथा विषधर सर्पों के समान विषैले बाणों की उन्होंने अपनी शिक्षा के बल से निवारण कर दिया।

राजन! इस प्रकार दोनों सेनाओं के सैनिक समूहों का महान विनाश हुआ। वहाँ रक्त और मांस की कीच जम गयी। योद्धाओं के उस महान संहार में चारों ओर से बहुत-से कबन्ध उठने लगे, जिनकी गणना नहीं की जा सकती थी। रथारूढ़ वीर बलराम ने विषधर सर्पों के समान भयंकर बाणों द्वारा जरासंध को आच्छादित करते हुए उस पर आक्रमण किया तथा मगधराज भी अपने शीघ्रगामी रथ द्वारा बड़े वेग से उनका सामना करने के लिये पहुँचा वे दोनों नाना प्रकार के अस्त्रों द्वारा एक-दूसरे को घायल करके जोर-जोर से गरजते थे।

दोनों के अस्त्र-शस्त्रों क्षीण हो गये, दोनों ही रथहीन हो गये तथा दोनों के ही घोड़े और सारथि मारे गये। उस दशा में वे दोनों पराक्रमी योद्धा गदा हाथ में लेकर एक-दूसरे पर टूट पड़े। हाथ में गदा उठाये वे दोनों महामनस्वीे वीर पृथ्वी को कम्पित करते हुए वहाँ एक-एक शिखर वाले दो पर्वतों के समान दिखायी देते थे। उन दोनों महाबाहु वीरों को युद्ध के लिये उद्यत देख दूसरे योद्धाओं के युद्ध बंद हो गये। उन दोनों की गदायुद्ध में ख्याति थी। वे दोनों बड़े रोष में भरकर एक-दूसरे पर धावा करते थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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