हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 108 श्लोक 1-20

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्‍टाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

मायावती सहित प्रद्युम्न का द्वारका में आगमन और रुक्मिणी के भवन में प्रवेश

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! शम्‍बरासुर मायाओं का ज्ञाता था, किंतु उसकी सारी माया समाप्‍त हो गयी। मायावी कालशम्‍बर रणभूमि में पराक्रम प्रकट करने वाला और अविनाशी था तो भी अष्‍टमी को युद्ध में प्रद्युम्न द्वारा मार डाला गया। ऋक्षवन्‍त नामक नगर में असुर शिरोमणि शम्‍बरा का वध करके देवी मायावती को साथ ले प्रद्युम्‍न अपने पिता के नगर में आये। शीघ्रतापूर्वक पराक्रम प्रकट करने वाले मायावी प्रद्युम्‍न आकाश में स्थित हो अपने पिता के तेज से सुरक्षित रमणीय पुरी द्वारका में आये। वे आकाश से भगवान श्रीकृष्‍ण के अन्‍त:पुर में उतर पड़े। उस समय मायावती (रति) के साथ मूर्तिमान कामदेव के समान प्रतीत होते थे। उस समय वहाँ उनके उतरने पर भगवान श्रीकृष्‍ण की जो रानियां थीं, उनमें से कुछ तो आश्‍चर्य से चकित हो उठीं, कितनी स्त्रियों को महान हर्ष हुआ और बहुत-सी भयभीत हो गयीं। प्रद्युम्‍न अपनी प्रियतमा के साथ मिलकर कामदेव के समान शोभा पा रहे थे। उनकी ओर निहारती हुई रानियों के मुख पर हर्ष छा रहा था। वे नेत्रों से उनकी रूपमाधुरी का पान कर रही थीं, प्रद्युम्‍न उनके नयनों के लिये उत्‍सव रूप हो गये। उनका मुख विनय से झुका हुआ था। वे पग-पग पर संकोच का अनुभव कर रहे थे। उन्हें देखकर श्रीकृष्‍ण की सभी रानियों के हृदय में वात्‍सल्‍य-स्‍नेह का संचार हो आया था। पुत्र की इच्‍छा रखने वाली रुक्मिणी उन्‍हें देखकर शोक से कातर हो उठीं। वे सैकड़ों सौतों से घिरकर आंसू बहाती हुई इस प्रकार बोलीं- 'मैंने रात में निशाकाल की युवावस्‍था बीत जाने पर अर्थात पिछले पहर में जैसा स्‍वरूप देखा है, (वह इस प्रकार है) मेरे प्राणनाथ कंसनिषूदन ने मेरे हाथ में फलयुक्‍त आम्रपल्‍लव लाकर दिया है। फिर श्रीकेशव ने मुझे अपने अंक में बिठाकर मोतियों की एक बहुत सुन्‍दर माला मेरे कण्‍ठ में बांध दी।

वह माला चन्‍द्रमा की किरणों के समान प्रकाशमान थी। फिर एक श्‍याम (सोलह वर्ष की अवस्‍था वाली अथवा श्‍यामवर्णा) स्त्री मेरे महल में प्रविष्‍ट हुई, जिसके केश बड़े ही मनोहर थे। श्‍वेत वस्‍त्र उसके अंग की शोभा बढ़ा रहे थे। उसके हाथ में कमल था। वह मेरी ओर देखती हुई घर के भीतर घुसी थी। वह स्‍त्री मेरा हाथ पकड़कर मुझे स्‍नानागार में ले गयी और स्‍वच्‍छ जल से उसने मुझे नहलाया। तत्‍पश्‍चात मेरा मस्‍तक सूँघकर उसने अपने हाथ से एक निर्मल कमल पुष्‍पों की माला लेकर मुझे पहना दी।' इस प्रकार स्‍वप्नों का वर्णन करती हुई रुक्मिणी का हृदय हर्ष से खिल उठा। सखियों से घिरी हुई उन महारानी ने कुमार प्रद्युम्‍न की ओर बारम्‍बार देखकर कहा- 'निश्‍चय ही यह किसी बड़भागिनी माता का दीर्घायु पुत्र है, जो देखने में बहुत ही प्रिय है। इस तरह कामदेव- जैसा सुन्‍दर यह बालक अभी पहले-पहले युवावस्‍था में प्रविष्‍ट हुआ है।' (फिर वे प्रद्युम्‍न से बोली)- 'बेटा! वह कौन-सी सौभाग्‍यशालिनी माता है, जो तुम-जैसे चिरंजीवी पुत्र से पुत्रवती हुई है? मेघ के समान श्‍यामसुन्‍दर शरीर वाले तुम अपनी पत्‍नी के साथ किसलिये यहाँ पधारे हो? यदि बलवान काल न उठा ले गया होता तो मेरा बेटा प्रद्युम्‍न भी अवश्‍य ही इसी (तरुण) अवस्‍था में स्थित होता अथवा मेरा तर्क करना-सोचना व्‍यर्थ नहीं है। तुम अवश्‍य ही श्रीकृष्‍ण के पुत्र हो। मैंने लक्षणों से तुम्‍हें पहचान लिया। तुम बिना चक्र के जनार्दन हो (यदि तुम्‍हारे हाथ में चक्र हो तो तुम में और श्रीकृष्‍ण में कोई अन्‍तर नहीं रह जायगा)। तुम्‍हारा मुख नारायण (श्रीकृष्‍ण) के समान है। तुम्‍हारे केश और केशान्‍त भाग उन्‍हीं के सदृश हैं। तुम्‍हारी दोनों जांघें, वक्ष:स्‍थल और दोनों भुजाएं मरे श्‍वशुर हलधर के सदृश हैं। तुम कौन हो, जो यहाँ अपने शरीर की कान्ति से समस्‍त वृष्णिकुल को प्रकाशित करते हुए खड़े हो? अहो! भगवान श्रीकृष्‍ण नारायण के समान तुम्‍हारा शरीर परमदिव्‍य है।' इसी बीच में शम्‍बर वध के विषयमें नारद जी का वचन सुनकर भगवान श्रीकृष्‍ण सहसा अन्‍त:पुर में आये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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