हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 80 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 80 श्लोक 1-5

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भगवत्युवाच

निर्वेष्टव्यं शरीरं यैर्व्रतकै: पुण्यकैरपि।
अरुन्धति प्रवक्ष्यामि सहैताभिर्वरेण तु।।1।।

कृष्णाष्टमीं या क्षिपति स्याद् वा मूलफलाशिनी।
ब्राह्मणायैकमशनं स्वं दत्वा भर्तृदेवता।।2।।
शुक्लवस्त्रा शुभाचारा गुरुदैवतपूजका।

एवं संवत्सरं कृत्वा ततो दद्याद् द्विजातये।।3।।
गोवालरज्जुसुकृतं चामरं च ध्वजं तथा।
दक्षिणापूर्णमिष्टासन्नं शक्‍त्या वापि शुचिव्रते।।4।।

ऊर्मिमन्त: स्वरालाग्रा: श्रोणिदेशावलम्बिन:।
तस्या भवन्ति केशास्तु भक्तिमत्या हि भर्तरि।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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