हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 115 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 115 श्लोक 1-5

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जनमेजय उवाच

भूय एव द्विजश्रेष्ठ यदुसिंहस्य धीमत: ।
कर्माण्यपरिमेयाणि श्रोतुमिच्छामि तत्त्वत:।।1।।

श्रूयन्ते विविधानि स्म अद्भुतानि महाद्युते:।
असंख्येयानि दिव्यानि प्रकतान्यपि सर्वश:।।2।।

यान्यहं विविधान्यस्य श्रुत्वा प्रीये महामुने।
प्रब्रूया: सर्वशस्तात तानि मे श्रृण्वतोऽनघ ।।3।।

वैशम्पायन उवाच
बहून्याश्चर्यभू‍तानि केशवस्य महात्मन:।
कथितानि महाबाहो नान्तं शक्यं‍ हि कर्मणाम्।।4।।

गन्तु हि भरतश्रेष्ठ विस्तरेण समन्तत:।
अवश्यं हि मया वाच्यं लेशमात्रेण भारत।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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