हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 61 श्लोक 1-15

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकषष्टिनतम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

रुक्मी की पुत्री शुभांगी द्वारा स्वयंवर में प्रद्युम्न का वरण, प्रद्युम्नपुत्र अनिरुद्ध का रुक्मी की पौत्री रुक्मीवती के साथ विवाह तथा बलराम द्वारा रुक्मी का वध

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर दीर्घकाल व्यतीत हो जाने के पश्चात शत्रुओं का दमन करने वाले पराक्रमी वीर रुक्मी ने अपनी पुत्री का स्वयंवर रचाया। उसमें रुक्मी का बुलावा पाकर विभिन्न दिशाओं से बहुतेरे महापराक्रमी श्रीसम्पन्न राजा और राजकुमार आये। वहाँ बहुत-से अन्य यदुकुमारों के साथ प्रद्युम्न भी उस शुभलोचना राजकुमारी को पाने की इच्छा रखते थे। उस विदर्भ-राजकुमारी का नाम था शुभांगी। वह कान्ति और शोभा से सम्पन्न थी। रुक्मी की वह कन्या उन दिनों अपने रुप-सौन्दर्य के लिये समस्त भूमण्डल में विख्यात थी। जब सभी महामनस्वी भूपाल स्वयंवर सभा में बैठ गये, तब उस विदर्भ राजकुमारी ने आकर शत्रुसूदन प्रद्युम्न का वरण कर लिया। प्रद्युम्न सम्पूर्ण अस्त्रों के ज्ञान एवं प्रयोग में कुशल थे।

उनका शरीर सिंह के समान सुदृढ़ था। वे नवयुवक थे। रूप में श्रीकृष्ण के उस पुत्र की समानता करने वाला संसार में दूसरा कोई नहीं था। वह राजकुमारी भी नयी अवस्था, सुन्दर रुप और उत्तम गुणों से सम्पन्न थी। जैसे नारायणी इन्द्रसेना अपने पति महर्षि मुद्गल के प्रति प्रेम करती थी, उसी प्रकार शुभांगी भी प्रद्युम्न उस विदर्भ-राजकुमारी को साथ लेकर चले आये। वीर प्रद्युम्न उसके साथ उसी प्रकार रमण करने लगे, जैसे राजा नल दमयन्ती के साथ करते थे। उन्होंने वैदर्भी के गर्भ से देवकुमार के समान तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम था अनिरुद्ध। वह अपने पराक्रमपूर्ण कार्य द्वारा भूमण्डल में अनुपम वीर माना जाता था। वह धनुर्वेद, वेद तथा नीतिशास्त्र का पारंगत विद्वान था।

राजन! जब अनिरुद्ध युवावस्था से सम्पन्न हुए, तब रुक्मिणी ने उनकी पत्नी बनाने के लिये रुक्मी की पौत्री को, जो सुवर्ण के समान गौर वर्ण वाली थी, उससे माँगा। उसका नाम था रुक्मवती। जनमेजय! राजा रुक्मी अनिरुद्ध के गुणों से ही आकृष्ट होकर अपनी पौत्री का विवाह उनके साथ करना चाहता था, अत: रुक्मिणी के आग्रह से उसे राजी रखने के लिये तथा प्रद्युम्न की प्रसन्नता के निमित्त उस महायशस्वी राजा ने श्रीकृष्ण के साथ स्पर्धा रखते हुए भी वैर त्यागकर प्रसन्नतापूर्वक कहा कि 'मैं अपनी पौत्री अनिरुद्ध के लिये दे रहा हूँ' तब भगवान श्रीकृष्ण अपनी पत्नी रुक्मिणी, प्रद्युम्न आदि पुत्रगण भैया बलराम तथा अन्य वृष्णिवंशी योद्धाओं के साथ सेना सहित विदर्भ देश में गये उस विवाहोत्सव में रुक्मी के भाई-बन्धु और सुहृदय नरेश भी उसका निमन्त्रण पाकर वहाँ आये थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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