हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवादउमा द्वारा सती स्त्री के महत्त्व का वर्णन करते हुए पुण्यक-व्रत की विधि का उपदेश उमा बोलीं– पवित्र मुस्कान वाली देवि! मैं अपने पतिदेव की कृपा से सर्वज्ञा हूँ तो भी पूर्वकाल में पतिदेव ने मुझे इसका उपदेश दिया था। तभी मुझे इस शुभ पुण्यक विधि का साक्षात्कार हुआ। अरुन्धती! तुम्हें अपनी बुद्धि से इस बात को निश्चित रूप से समझ लेना चाहिए कि पुण्यक-व्रत की विधि सनातन है। मुझे महादेव जी की कृपा से उसका दर्शन (ज्ञान) हुआ है। अनिन्दिते! मैंने अपने पति बुद्धिमान भगवान शिव की आज्ञा से समस्त पुण्यकों का आचरण किया है। जिस नारी को सतीत्व और धर्माचरण का अखण्डित रूप से निर्वाह सदा अभीष्ट होता है, उसी के लिये पुरातन महर्षियों ने पुण्यकों की विधि का प्रतिपादन किया है। शुभे! अरून्धति! असती नारियों के द्वारा भली-भाँति किये जाने पर भी दान और उपवास के पुण्य तथा पुण्यक निष्फल हो जाते हैं। जो स्त्रियां अपने पति को ठगती हैं, उन्हें धोखा देती हैं, जिनकी योनि जारसंग से दूषित हो गयी है, वे उस योनिदोष के कारण पुण्य का फल नहीं भोगने पातीं; नरक में ही गिरती हैं। जिनके आचार-विचार शुद्ध हैं, जो पति को ही आराध्यदेव मानती हैं, उनमें अनन्यभाव से अनुरक्त होती हैं, सदा धर्म के अनुष्ठान में लगी रहती हैं और सतियों के पथ पर ही चलती हैं, वे साध्वी स्त्रियां ही इस जगत को धारण करती हैं। जिनकी वाणी परनिन्दा और असत्य आदि दोष से दूषित नहीं है, जो बाहर-भीतर से शुद्ध रहने वाली हैं, जो धैर्यशालिनी तथा शुभ व्रत का पालन करने वाली हैं, जो सदा अच्छी ही बातें बोला करती हैं, वे साध्वी स्त्रियां इस जगत को धारण करती हैं। अपना पति रोगी हो, पतित हो अथवा दीन हो, नारी को किसी तरह भी उसका त्याग नहीं करना चाहिये। यह सनातन धर्म है। शुभानने! पतिव्रता स्त्री अपना तथा न करने योग्य काम करने वाले पतित और गुणहीन पति का भी उद्धार कर ही देती हैं। जिस स्त्री की योनि दूषित है, उसकी शुद्धि के लिये कोई प्रायश्चित ही नहीं है। वह तो अपने पाप के द्वारा मारी ही गयी। जो केवल वाणी के दोष से दूषित है, उसकी शुद्धि के लिये सत्पुरुषों ने वेद में प्रायश्चित बताया है। सत्यपरायणा अरून्धति! जो पुण्यात्माओं को प्राप्त होने वाली गति की अभिलाषा रखती हो, उस स्त्री को अपने पति की आज्ञा के अधीन होकर ही सदा व्रत का पालन अथवा उपवास करना चाहिये। योनि दूषित करने से नारी पशु-पक्षी आदि की सहस्रों योनियों में जन्म लेकर कष्ट भोगती है। वह स्त्री सहस्रों कल्पों में भी सद्गति नहीं पाती। यदि असती होकर रहने वाली नारी मरने के बाद कभी मनुष्य–योनि में जन्म लेती है तो चाण्डाल-योनि में ही उसकी उत्पत्ति होती है और वह खोटी बुद्धि वाली स्त्री कुत्तों का मांस खाने वाली चाण्डाली होती है। तपोधने! स्त्रियों के सदा पति ही देवता हैं। सत्पुरुषों ने इस सत्य का साक्षात्कार किया है। जिस स्त्री पर उसका पति संतुष्ट रहता है, वह सती एवं धर्मचारिणी है। जो कौतूहलवश परपुरुषों का संग करके मारी गयी है, उन स्त्रियों को कभी उत्तम लोक की प्राप्ति नहीं होती। जिनका मन सद्भावपूर्वक केवल पति में ही लगा रहता है, उन्हीं को ही सती समझना चाहिये। सौम्य स्वभाव वाली अरून्धति! जो नारियां मन, वाणी और क्रिया द्वारा पति का उल्लंघन नहीं करती हैं, उन्हीं को पुण्यक-व्रतों द्वारा पुण्यफल की प्राप्ति बतायी गयी है। स्वर्गलोक की शोभा बढ़ाने वाली देवि! मैंने तपस्या द्वारा जिसका साक्षात्कार किया है, पुण्यों की वह सम्पूर्ण विधि बतायी जाती है। तुम इन सारी स्त्रियों के साथ उसे ध्यान देकर सुनो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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