हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 33 श्लोक 1-13

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: त्रयस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


बलराम और श्रीकृष्ण का गुरु सान्दीपनि के यहाँ जाकर विद्या पढ़ना और गुरु दक्षिणा में उनके मरे हुए पुत्र को उन्हें देकर मथुरापुरी लौट आना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! बलवान श्रीकृष्ण वहाँ रोहिणीकुमार बलराम जी के साथ यादवों से भरी हुई उस मथुरापुरी में सुखपूर्वक रहने लगे उनके शरीर को युवावस्था प्राप्त हुई। वे वीर श्रीकृष्ण राजश्री से प्रकाशित हुए रत्न राशिमय आभूषणों से विभूषित मथुरापुरी में विचरण करने लगे कुछ काल के अनन्तर बलराम और श्रीकृष्ण एक साथ अबन्तिपुर (उज्जयिनी)– के निवासी गुरु सान्दीपनि के यहाँ गये, जो काशिदेश में उत्पन्न हुए थे। वे दोनों भाई वहाँ धनुर्वेद की शिक्षा ग्रहण करने के लिये गये थे। अपना गोत्र बताकर गुरुकुल के आचार से अपने अलंकृत करके दोनों ही स्वाध्याय करने लगे।

बलराम और श्रीकृष्ण दोनों गुरु की सेवा में तत्पर रहते थे। अहंकार तो उन्हें छू भी नहीं सका था। काशिदेशीय गुरु ने उन दोनों को शिष्य रुप से ग्रहण किया और उन्हें विशुद्ध विद्याऐं प्रदान कीं। वे दोनों वीर श्रुतिधर थे- किसी भी बात को एक बार सुन लेने मात्र से ही ग्रहण कर लेते थे, अत: उन्होंने यथावत रूप से विद्याओं को प्राप्त किया। चौसठ दिन-रात में ही छहों अंगों सहित सम्पूर्ण वेद का अध्ययन कर लिया। गुरुजी ने उन्हें थोड़े ही समय में दीक्षा, संग्रह, सिद्धि और प्रयोग- इन चार पादों से युक्त धनुर्वेद की तथा रहस्य सहित शस्त्र समूहों की शिक्षा दे दी उनकी अत्यन्त अलौकित बुद्धि का विचार करके गुरु ने यहीं माना कि इन दोनों वीरों के रूप में मेरे यहाँ साक्षात चन्द्रदेव और सूर्यदेव पधारे हैं। उन्होंने पर्व के अवसरों पर उन दोनों महात्माओं को अर्चाविग्रह में प्रतिष्ठित महान देवता साक्षात भगवान विष्णु की आराधना करते हुए भी देखा था।

भारत! विद्या पढ़कर कृतकृत्य हो बलराम-सहित श्रीकृष्ण ने अपने गुरु सान्दीपनि से पूछा- ‘भगवन्! आपको गुरुदक्षिणा के रूप में क्या दूं?’ उन दोनों का प्रभाव जानकर हर्ष में भरे हुए गुरु ने कहा- ‘मेरा जो पुत्र खारे पानी के समुद्र में डूब कर मर गया था, उसे ही तुम ले आकर दे दो, यही मेरी इच्छा है। मेरे एक ही पुत्र हुआ था। वह भी तीर्थ यात्रा के अवसर पर प्रभास क्षेत्र में तिमि नामक मत्यस द्वारा मार डाला गया, उसी को तुम फि‍र ले आओ’। तब बलराम जी की अनुमति लेकर श्रीकृष्ण ने उनसे कहा- ‘बहुत अच्छा’; फि‍र तेजस्वी श्रीहरि समुद्र तट पर जाकर उसके जल के भीतर घुस गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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