हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 33 श्लोक 14-30

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: त्रयस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 14-30 का हिन्दी अनुवाद

उस समय समुद्र ने हाथ जोड़कर उन्हें दर्शन दिया। श्रीकृष्ण ने उससे पूछा- ‘अजी, सान्दीपनि मुनि का पुत्र कहाँ है?’ समुद्र ने उत्तर दिया- ‘माधव! पञ्चजन नामक महान दैत्यों ने तिमि रूप से उस बालक को अपना ग्रास बना लिया था’। तब अपनी महिमा से कभी च्युत न होने वाले भगवान पुरुषोत्तम ने पञ्चजन के पास जाकर उसे मार डाला, परंतु उन्हें वहाँ उनके गुरु का पुत्र प्राप्त नहीं हुआ। पञ्चजन को मारकर भगवान जनार्दन ने एक शंख हस्तगत किया, जो देवताओं और मनुष्यों में पाञ्चजन्य नाम से विख्यात है। तदनन्तर भगवान पुरुषोत्तम वैवस्वत यम की पुरी में गये। यम ने आकर उन भगवान गदाधर को प्रणाम किया।

तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा- ‘मुझे मेरे गुरु का पुत्र दे दो (परंतु यम ने उसे देने से इनकार किया) तब उन दोनों में वहाँ महान घोरतर युद्ध हुआ। भयानक यमराज को जीतकर पुरुषोत्तम अच्युत ने अपने बालक गुरुपुत्र को प्राप्त कर लिया जो दीर्घकाल से नष्ट हो चुका था, उस गुरुपुत्र को भगवान यमलोक से यहाँ उठा ले आये। उन अमित तेजस्वी भगवान श्रीकृष्ण के प्रभाव से दीर्घकाल से मरा हुआ सान्दीपनि का पुत्र पुन: पूर्ववत शरीर धारण करके जी उठा। वह अशक्य, अचिन्त्य और अत्यन्त अद्भुत कार्य देखकर सभी प्राणियों को बड़ा आश्चर्य हुआ जगत के स्वामी लक्ष्मीपति भगवान श्रीकृष्ण गुरुपुत्र को साथ ले पाञ्चजन्य शंख तथा बहुत से बहुमूल्य रत्न लेकर पुन: लौट आये इन्द्र के छोटे भाई श्रीकृष्ण ने उन बहुसंख्यक एवं बहुमूल्य रत्नों को राक्षसों द्वारा (जो यम के किंकर थे) मंगवा कर गुरु को निवेदन किया। दोनों भाई बलराम और श्रीकृष्ण ने गदा और परिघ के युद्धों में तथा सम्पूर्ण अस्त्रों में शीघ्र ही प्रमुखता प्राप्त कर ली। वे समस्त संसार के धनुर्धरों में श्रेष्ठ माने जाने लगे।

उदार बुद्धि वाले श्रीकृष्ण ने प्रसन्नचित्त होकर सान्दीपनि के पुत्र को उसी रूप और अवस्था में रत्नों के साथ उन्हें लौटा दिया। राजन! काशिदेश में उत्पन्न हुए सा‍न्दीपनि ने चिरकाल से नष्ट हुए अपने पुत्र से मिलकर बलराम और श्रीकृष्ण भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए बड़े प्रसन्न हुए। उत्तम व्रत का पालन करने वाले वे दोनों वीर वसुदेवपुत्र अस्त्र-विद्या की शिक्षा पाकर गुरु की आज्ञा ले पुन: मथुरापुरी को लौट आये उस समय उग्रसेन आदि समस्त यादवों ने प्रसन्नचित्त होकर सेना सहित आगे जा उन दोनों यदुनन्‍दन वीरों की अगवानी की व्यवसायी वर्ग, प्रजावर्ग अथवा प्रकृति मण्डल, मन्त्री, पुरोहित तथा बालकों और बूढ़ों सहित वह सारी पुरी (श्रीकृष्ण–बलराम के दर्शन के लिये) उमड़ पड़ी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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