हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 17 श्लोक 1-18

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्‍तदश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


गोपों द्वारा श्रीकृष्ण की बात को स्वीकार करके गिरियज्ञ का अनुष्ठान तथा भगवान का दिव्यरूप धारण करके उनकी पूजा ग्रहण करने के पश्चात उन्हें वर देना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! दामोदर (श्रीकृष्ण) की बात सुनकर गौओं पर ही अपनी जीविका निर्भर करने वाले वे गोपगण प्रसन्नतापूर्वक उनके वचनामृत का आस्वादन करके नि:शंक होकर बोले- 'हमारे बाल गोपाल! तुम्हारी यह बुद्धि- यह विचारधारा महत्त्वपूर्ण होने के साथ ही गोपों के लिये हितकर तथा गौओं की वृद्धि करने वाली है। यह हम सब लोगों को तृप्ति ही प्रदान करती है। तुम्हीं हमारी गति हो, तुम्हीं रति (आनन्द) हो, तुम्हीं सर्वज्ञ और तुम्हीं हमारे सबसे बड़े आश्रय हो! भय के अवसरों पर तुम्हीं हमें अभय देने वाले हो तथा तुम्ही हमारे लिये सुहृदों के भी सुहृद हो। श्रीकृष्ण! तुम्हारे कारण ही यह गोष्ठ सकुशल हैं। यहाँ की गौओं का समुदाय प्रसन्न है। सारे शत्रु शान्त हो गये हैं तथा समस्त व्रज, जैसे स्वर्ग में रह रहा हो, इस तरह यहाँ सुखपूर्वक निवास करता है। जन्म काल से ही तुमने जो यह शकट-भंग और पूतना वध आदि कार्य किया है, यह इस भूतल पर देवताओं के लिये भी सुकर नहीं है। यह सब देखकर तथा समझ में आने योग्य तुम्हारा जो अभिमानपूर्ण वचन है (कि मैं बलपूर्वक गो-यज्ञ आदि कराउँगा), उस पर ध्‍यान देकर हमारे चित्त चकित हो उठे हैं। तुम अपने पर उत्‍कृष्ट बल, सुयश और पराक्रम द्वारा मनुष्यों में सबसे उत्तम हो। ठीक उसी तरह जैसे देवताओं में इन्द्र सबसे श्रेष्ठ हैं। तुम अपने तीक्ष्ण प्रताप, अनुपम दीप्ति तथा पूर्णता की दृष्टि से भी मनुष्यों में उसी प्रकार सर्वश्रेष्ठ हो, जैसे देवताओं में दिवाकर (सूर्य)। मनोरम कान्ति, शोभा-सम्पत्ति प्रसाद, सुन्दर मुख और मुस्कराहट के कारण भी तुम देवताओं में चंद्रमा की भाँति मनुष्यों में सबसे उत्तम हो। बल, शरीर, बचपन और मनोहर चरित्र की दृष्टि से भी तुम्हारे समान शक्तिशाली मनुष्य दूसरा कोई नहीं है। प्रभो! तुमने गिरियज्ञ के विषय में जो बात कही है, उसका उल्‍लंघन कौन कर सकता है? क्या महासागर कभी तटभूमि को लांघ सका है?

तात! आज से-इन्द्र-याग का उत्‍सव स्थगित हो गया। अब यह शोभा सम्पन्न गिरियज्ञ, जिसे तुमने चालू किया है, गौओं और गोपों के हित के लिये सम्पादित हो। दूध से भरे हुए सुन्दर-सुन्दर पात्र एकत्र किये जायँ। कुओं पर सुन्दर-सुन्दर घड़े स्थापित किये जायँ। नयी बनायी हुई नहरों तथा बड़े-बड़े कुण्‍डों को दूध से भर दिया जाय। भक्ष्य-भोज्य और पेय सब कुछ तैयार कर लिया जाय फल के गूदों तथा भात से भरे हुए पात्र रखे जायँ। सारे व्रज का तीन दिनों का सारा दूध संग्रहीत कर लिया जाय। भोजन कराने योग्य जो भैंस-गाय आदि व्रज के पशु हैं, उन्हें बड़े आदर के साथ उत्तमोत्तम पदार्थ खिलाये जायँ और इस प्रकार समस्त गोपों के सहयोग से सम्पन्न होने वाले इस यज्ञ का आरम्भ हो। फिर तो व्रज में आनन्दजनक महान कोलाहल होने लगा। सारा गोकुल हर्षोल्‍लास में मग्न हो गया। वाद्यों के गम्भीर घोष, सांड़ों की गर्जना और बछड़ों के रँभाने से जो सम्मिलित शब्‍द प्रकट हुआ, वह गोपों का हर्ष बढ़ाने लगा। दही के कुण्‍ड में ऊपर-ऊपर घी छा रहा था। दूध की अनेक नहरें बहनें लगीं। फलों के गूदों की बड़ी भारी राशि जमा हो गयी। बहुत-से संस्कारक द्रव्‍य संचित हो गये और उज्ज्वल भातों का पर्वताकार पुंज प्रकाशित होने लगा। इस प्रकार गौओं से भरा हुआ श्रीकृष्ण का गिरियज्ञ चालू हो गया। सन्तुष्ट हुए सभी गोपगण उसमें सम्मिलित होकर आवश्‍यक कार्य करते थे। गोपागंनाओं ने अपनी उपस्थिति से उस महोत्‍सव को मनोहर बना दिया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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