हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 62 श्लोक 1-15

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्विषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

बलदेव जी का माहात्य उनके द्वारा हस्तिनापुर को गंगा में गिराने का अद्भुत प्रयत्न

राजा ने कहा– ब्रह्मर्षे! धरती को धारण करने वाले शेष के अवतार बुद्धिमान बलराम के माहात्य को मैं पुन: सुनना चाहता हूँ जो पुराणवेत्ता पुरुष हैं, वे महात्मा बलदेव को अत्यन्त तेज की राशि और अपराजित बताते हैं। विप्रवर! मैं उनके कर्मों को पुन: यथार्थ रुप से श्रवण करना चाहता हूँ, जिन्हें विद्वान पुरुष महान बल-पराक्रम से सम्पन्न आदिदेव अनन्त नाग के रुप में जानते हैं।

वैशम्पायन जी कहते हैं– जनमेजय! पुराण में बलभद्र जी को साक्षात नागराज धरणीधर शेष बताया जाता है। वे तेज की निधि, दिव्य शोभा से सम्पन्न, कभी कम्पित ने होने वाले और पुरुषोत्तम हैं। वे योग के आयार्य, महापराक्रमी, बलवान तथा देवताओं की गुप्त मन्त्रणा को सुनने और उस पर विचार करने वालों में प्रधान हैं। उन्होंने गदायुद्ध में जरासंध को जीत लिया, परंतु उसका वध नहीं किया। भूतल के बहुत-से विख्यात राजा, जो सब-के-सब मगधराज जरासंध का अनुसरण करते थे, युद्ध में बलदेव जी के द्वारा परास्त कर दिये गये। जिनमें दस हजार हाथियों का बल था, वे भयानक पराक्रमी भीमसेन बाहुयुद्ध में बलदेव जी के द्वारा अनेक बार पराजित हो चुके थे। एक समय दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा का अपहरण करते हुए जाम्बवतीकुमार साम्ब को कौरवाें ने [[[हस्तिनापुर]] में कैद कर लिया। वह नगर सब ओर से राजाओं द्वारा घिरा हुआ था। कहते हैं, साम्ब बलपूर्वक उस कन्या को ले जा रहे ‍थे, इसलिये उन्हें बंदी बनाया गया।

साम्ब को कैद कर लिया गया है, यह सुनकर महाबली बलराम उन्हें छुड़ाने के लिये आये; परंतु वे शान्तिपूर्वक माँगने पर साम्ब को न पा सके। तब बलवान बलराम कुपित हो उठे और उन्होंने वहाँ एक महान अद्भुत कार्य कर दिखाया। महातेजस्वी बलराम जी ने, जो किसी के द्वारा भी निवारण या भेदन करने योग्य नहीं है, उस अप्रतिम शक्तिशाली दिव्य हल नामक अस्त्र को उठाकर उसे ब्रह्म मन्त्र से अभिमन्त्रित किया और कौरवनगर हस्तिनापुर के परकोटे की नींव में धँसाकर समूचे नगर को गंगा जी में उलट देने की इच्छा की। अपने नगर को चक्कर काटता देख राजा दुर्योधन ने तुरंत आकर बुद्धिमान बलदेव जी की सेवा में पत्नी सहित साम्ब को लौटा दिया। उस समय उसने अपने–आपको महात्मा‍ बलराम जी के ‍हाथ में शिष्य भाव से सौंप दिया। तब उन्होंने कुरुराज दुर्योधन को गदायुद्ध की शिक्षा देने के लिये अपना शिष्य बना लिया। राजेन्द्र! तभी से यह नगर कुछ घुमा और गंगा जी की ओर झुकाया हुआ–सा प्रतीत होता है।

Next.png

-


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः