हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 5 श्लोक 1-16

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पंचम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

वसुदेव जी का नन्द को व्रज में लौटने की सम्मति देना और नन्द जी का गोव्रज की शोभा निहारते हुए वहाँ पधारना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! वसुदेव जी ने प्रसव से पहले ही रोहिणी को व्रज में भेज दिया था। जब उन्होंने सुना कि रोहिणी ने पहले ही एक ऐसे पुत्र को जन्म दिया है, जिसका मुख चन्द्रमा से भी अधिक कान्तिमान है, तब वे तुरंत ही (कंस का कर चुकाने के लिये पत्नी‍ सहित मथुरा में आये हुए) नन्द गोप के पास जाकर मंगलमयी वाणी में बोले- 'मित्र! तुम इन यशोदा जी के साथ ही शीघ्र ही व्रज को लौट जाओ। तात! वहाँ जाकर उन दोनों बालकों को जातकर्म आदि संस्कारों से सम्पन्न करके व्रज में ही सुखपूर्वक उनका पालन-पोषण और संवर्धन करो। व्रज में रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुआ जो मेरा शिशु पुत्र है, उसकी भी रक्षा करना। भाई! मैं तो पितृपक्षों में पुत्रवानों के द्वारा निन्दनीय ही होऊँगा; क्योंकि मैं ऐसा भाग्यहीन हूँ कि अपने एकमात्र शिशु पुत्र का मुख नहीं देख पाता हूँ। यद्यपि मुझे इस बात का ज्ञान है कि सुख-दु:ख और संयोग-वियोग आदि प्रारब्ध के ही अधीन हैं; तथापि निरन्तर बना रहने वाला भय मुझ बुद्धिमान की भी बुद्धि को बलपूर्वक हर लेता है। इस निर्दय कंस से मुझे सदा यह डर लगा रहता है कि कहीं ये मेरे इस शिशु का भी वध न कर डाले। अत: तात! नन्द गोप! तुम मेरे पुत्र रोहिणीकुमार की जिस उपाय से भी रक्षा सको, करो। बालद्रोहियों के स्वरूप का यथावद्रूप से विचार करके जैसे बने, उसके जीवन की रक्षा करो; क्योंकि जगत में बहुत-से ऐसे विघ्न खड़े हुए है, जो बालकों को त्रास दे रहे हैं। मेरा वह पुत्र बड़ा है और तुम्हारा यह बालक छोटा। तुम इसे इन दोनों को ही सुखपूर्वक समान दृष्टि से देखो। जैसे इनके नाम एक-से (एक अर्थ वाले) हैं[1] उसी तरह इन पर तुम्हारा वात्सल्य भी एक-सा ही होना चाहिये। नन्दगोप! इन दोनों की अवस्था प्राय: समान है। ये दोनों जिस तरह साथ-साथ तुम्हारे उस व्रज में बढ़ते हुए शोभा पा सकें, वैसा यत्न करो।

बाल्यावस्था में सब लोग खेल-कूद से मन बहलाते हैं। बालकपन में प्राय: सभी मनुष्य मोहग्रस्त रहते हैं। उन्हें कर्तव्य का बोध नहीं रहता तथा बचपन में सभी बात-बात पर बहुत चिढ़ते और रूठते हैं; अत: बच्‍चों को इन सभी दशाओं में सँभालते हुए उनके लालन-पालन के लिये प्रयत्नशील रहो। देखो, वृन्दावन में किसी तरह भी गौओं के ठहरने का स्थान न बनाना। वहाँ निवास करने वाले पापदर्शी केशी से तुम्हें सदा डरते रहना चाहिये। वन में सांप-बिच्छू, कीड़े-मकोड़े तथा पक्षियों से और गोव्रज में गौओं तथा बछड़ों से इन दोनों शिशुओं की तुम्हें सदा रक्षा करनी चाहिये। नन्द गोप! रात बीत गयी तुम तेज चलने वाली सवारी पर बैठकर शीघ्रतापूर्वक यहाँ से पधारो। ये दायें-बायें उड़ने वाले पक्षी मानो तुम्हें जाने के लिये कह रहे हैं- विदा दे रहे हैं’। महात्मा वसुदेव के द्वारा किसी गुप्त रहस्य का ज्ञान करा दिये जाने पर नन्द बाबा यशोदा जी के साथ प्रसन्नतापूर्वक सवारी पर बैठे। तदन्तर सदा सावधान रहने वाले परम बुद्धिमान नारद जी ने छोटे-छोटे बालक जिसे कंधे पर ढो सकें, ऐसी शिबिका (डोली) में अपने शयन करने योग्य शिशु को सुला दिया। फिर यमुना जी के किनारे-किनारे जाने वाले ऐसे एकान्त मार्ग से वे चले, जहाँ जल की बहुतायत थी और ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जैसे कृष्ण का अर्थ है अपनी ओर खींचने वाला, उसी तरह संकर्षण का भी है।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः