हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 44 श्लोक 1-10

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चतुश्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण द्वारा शृगाल का वध और उसके पुत्र का करवीरपुर राज्य पर अभिषेक

वैशम्पायन जी कहते हैं– जनमेजय! उन सबके आने का समाचार पाकर इंद्र के समान पराक्रमी रणदुर्मद राजा शृगाल अपनी पुरी पर आक्रमण हुआ समझकर नगर से बाहर निकला। वह एक श्रेष्ठ रथ पर चढ़ कर चला। उसका वह रथ सूर्य के समान तेज पुंज से प्रकाशित हो रहा था। वह रणभूमि में (अप्रतिहत गति) से जाने वाला था। उसमें सभी तरह के अस्त्र–शस्त्र भरे हुए थे। उसके पहियों की जो घरघराहट होती थी, वही मानो उसका अट्टहास था (अथवा वह पहियों की घर्घर ध्वनि से मेघ की गंभीर गर्जना का उपहास कर रहा था) उसका आकार मंदराचल के समान था। उस रथ को विचित्र आभरणों से विभूषित किया गया था। वह अभक्ष सायकों से भरे हुए तूणीरों से परिपूर्ण था तथा समुद्र की गंभीर गर्जना के समान घरघराहट पैदा करता था। उसमें हरे रंग के शीघ्रगामी घोड़े जुते हुए थे। वह पर्वत के शिखरों पर भी कहीं अटकता नहीं था। उसके कूबर के[1] भीतरी भाग में सोना जड़ा हुआ था, उसका धुरा भी सुदृढ़ था, उस रथ की बड़ी शोभा हो रही थी।

वह सुंदर रस्सियों से भली-भाँति बंधा हुआ था, उसकी दीप्ति सब ओर छिटक रही थी, वह पक्षिराज गरुड़ के समान तीव्र गति से चलने वाला था और इंद्र के हरित अश्व से जुते हुए आकाशगामी पर्वताकार रथ की समानता करता था। शृगाल ने नियमपूर्वक गायत्री–जप करके सूर्य देव की आराधना की थी। उसका वह नियम पूर्ण होने पर साक्षात भगवान सूर्य ने उसे वह रथ दिया था, जो सूर्य की किरणों के समान सुनहरी बागडोरों से उस रथ के घोड़ों को काबू में लाया जाता था। शत्रुओं के रथों को नष्ट कर देने वाले उस श्रेष्ठ रथ के द्वारा राजा शृगाल उसी तरह श्रीकृष्ण पर चढ़ आया था जैसे पतिंगा आग पर टूट पड़ता है।

उसके हाथ में धनुष और तीखे बाण शोभा पाते थे। वह कवच धारण करके सोने की माला से विभूषित था। उसकी चादर और पगड़ी श्वेत वर्ण की थी और नेत्र अग्नि के समान जलते–से प्रतीत होते थे। वह बारम्बार अपने दु:सह धनुष को हिलाता हुआ उसकी प्रत्यंचा खींचता था और आग की ज्वालाओं से युक्त रोषजनित उच्छ्वास छोड़ रहा था। अपने आभूषण–समूहों की प्रभाओं से प्रकाशित होकर वह राजा शृगाल मेरु पर्वत के समान शोभा पाता था और रथ पर बैठे हुए गिरिराज–सा दृष्टिगोचर होता था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कूबर रथ का वह भाग है, जिस पर जूआ बांधा जाता है।

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