हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 112 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 112 श्लोक 1-5

Prev.png

 

अर्जुन उवाच
मुहूर्तेन वयं ग्रामं तं प्राप्य भरतर्षभ।
विश्रान्तवाहना: सर्वे निवासायोपसंस्थिता:।।1।।

ततो ग्रामस्य‍ मध्येऽहं निविष्ट: कुरुनन्दन।
समन्ताद् वृष्णिसैन्येन महता परिवारित:।।2।।

तत: शकुनयो दीप्ता मृगाश्च क्रूरभाषिण:
दीप्तायां दिशि वाशन्तो भयमावेदयन्ति मे।।3।।

संध्यारागो जपावर्णो भानुमांश्चैव निष्प्रभ:।
पपात महती चोल्का पृथिवी चाप्यकम्पत।।4।।

तान् समीक्ष्य महोत्पातान् दारुणॉल्लोहमर्षणान्।
योगमाज्ञापयंस्तत्र जनस्योत्सुकचेतस:।।5।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः