वैशम्पायन उवाच
प्रदोषार्द्धे कदाचित् तु कृष्णे रतिपरायणे।
त्रासयन् समदो गोष्ठमरिष्ट: प्रत्यदृश्यत।।1।।
निवार्णांगारमेघाभस्तीक्ष्णश्रृंगोअर्कलोचन:।
क्षुरतीक्ष्णाग्रचरण: काल: काल इवापर:।।2।।
लेलिहान: सनिष्पेषं जिह्वयोष्ठौ पुन: पुन:।
गर्विताविद्धलांगूल: कठिनस्कन्धबन्धन:।।3।।
ककुदोदग्रनिर्माण: प्रमाणद् दुरतिक्रम:।
शकृन्मूत्रोपलिप्तांगो गवामुद्वेजनो भृशम्।।4।।
महाकटि: स्थूलमुखो दृढजानुर्महोदर:।
विणावल्गितगतिर्लम्बता कण्ठचर्मणा।।5।।