हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 115 श्लोक 1-23

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पंचदशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद

भगवान श्रीकृष्ण के पराक्रमों का संक्षेप से वर्णन

जनमेजय ने कहा- द्विजश्रेष्ठ! मैं परम बुद्धिमान यदुसिंह श्रीकृष्ण के अपरिमेय कर्मों का तात्त्विक वर्णन पुन: सुनना चाहता हूँ। महातेजस्वी भगवान श्रीकृष्ण के अनेक प्रकार के अद्भुत, असंख्य एवं दिव्य चरित्र सुने जाते हैं, जो सर्वथा उनके द्वारा उत्कृष्ट रूप से किये गये हैं। निष्पाप महामुने! भगवान के जिन-जिन विविध चरित्रों को सुनकर प्रसन्न होता हूँ, उनका सम्पूर्ण रूप से वर्णन कीजिये। मैं उन्हें ध्यान से सुनूँगा। वैशम्पायन जी कहते हैं- भरतश्रेष्ठ! महाबाहो! महात्मा केशव के बहुत-से आश्चर्यजनक चरित्र बताये गये। सब ओर से विस्तार के साथ वर्णन करने पर उनके कर्मों पार पाना असम्भव है। अत: भारत! मैं संक्षेप से ही उनके उन कर्मों का अवश्य वर्णन करूँगा। नरेश्वर! अपरिमित पराक्रमी तथा सुविख्यात उदार कर्म वाले भगवान विष्णु के चरित्रों का मैं क्रमश: वर्णन करूँगा, एकाग्रचित्त होकर सुनो। द्वारका में निवास करते हुए यदुकुल सिंह बुद्धिमान श्रीकृष्‍ण ने मुख्य-मुख्य महामनस्वी नरेशों के राष्ट्रों में हलचल मचा दिया था। उन दिनों एक विचक्र नामक दानव था, जो यादवों छिद्र ही ढूँढा करता था। श्रीकृष्ण ने उसका वध का डाला। फिर उस महात्मा ने प्रागज्योतिषपुर में जाकर समुद्र के भीतर रहने वाले दुष्टात्मा नरक नामक दानव का संहार किया। एक बार श्रीकृष्ण ने इन्द्र को भी युद्ध में हराकर बलपर्वूक पारिजात वृक्ष का अपहरण कर लिया था।

इसी प्रकार लोहितह्रद में भगवान वरुण को पराजित किया था। करूष देश का राजा दन्तवक्त्र दक्षिणा पथ में उनके द्वारा मारा गया। एक सौ अपराध पूर्ण होने पर शिशुपाल को भी उन्होंने काल के गाल में भेज दिया। महाराज! बलि का महापराक्रमी पुत्र बाण एक सहस्र भुजाएँ धारण करता था और भगवान शंकर के द्वारा वह सर्वथा सुरक्षित था, किंतु भगवान श्रीकृष्ण ने शोणितपुर में जाकर महासमर में उसे पराजित किया और जीवित छोड़ दिया। उन महात्मा ने मेरुगिरि में अग्‍निदेव पर विजय पायी तथा युद्ध में सौभ विमान के अधिपति राजा शाल्व को जीता और मार गिराया। फिर सागर में क्षोभ पैदा करके पश्चजन को मारकर पाश्चजन्य शंख पर अधिकार कर लिया। हयग्रीव का वध किया और अन्य महाबली नरेशों को भी काल के गाल में डाल दिया। जरासंध की मृत्यु करवाकर सब राजाओं को उसके बन्धन से मुक्त किया। एकमात्र रथ के द्वारा राजाओं को जीतकर गान्धार-राजकुमारी का अपहरण किया। पाण्डव अपने राज्य से भ्रष्ट हो चुके थे और शोक से आतुर थे, उस अवस्था में भगवान श्रीकृष्ण ने उन सब की रक्षा की।

इन्द्र के घोर खाण्डव वन को अर्जुन द्वारा दग्ध करा दिया। जनमेजय! फिर अग्नि का दिया हुआ गाण्डीव धनुष अर्जुन को अर्पित किया तथा कौरव-पाण्डव के घोर विग्रह के समय पाण्डवों का दूतत्त्व किया। इन्हीं यादव शिरोमणि ने यदुवंश की वृद्धि की और कुन्ती के सामने पाण्डवों के विषय में यह प्रतिज्ञा की कि ‘महाभारत-युद्ध समाप्त होने पर मैं तुम्हें तुम्हारे पुत्रों को वापस दे दूँगा।' इन्होंने महातेजस्वी राजा नृग को अत्यन्त भयंकर शाप से मुक्त किया। कालयवन को युद्ध में मारा (मुचुकुन्द द्वारा उसका नाश करा दिया)। दो महापराक्रमी दुर्धर्ष वानर मैन्द और द्विविद को तथा ऋक्षराज जाम्बवान को भी युद्ध में पराजित किया। सान्दीपनि का पुत्र तथा तुम्हारे पिता परीक्षित- ये दोनों यमराज के वश में हो गये थे, परंतु उन श्रीकृष्ण के तेज से जीवित हो गये। जनमेजय! बड़े-बड़े राजाओं का विनाश करने वाले बहुत-से घोर संग्राम प्राप्त हुए, परंतु उन युद्धों में अद्भुत विजय पाकर भगवान श्रीकृष्ण ने जिस प्रकार समस्त नरेशों को मार गिराया, उसका वर्णन मैं कर चुका हूँ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अर्न्तगत विष्णु पर्व में वासुदेव-माहात्म्यविषयक एक सौ पंद्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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