हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 63 श्लोक 1-13

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: त्रिषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद

नरकासुर का परिचय, द्वारका में इन्द्र का आगमन और श्रीकृष्ण से नरक वध के लिये अनुरोध, सत्यभामा सहित श्रीकृष्ण का प्राग्योतिषपुर में गमन तथा उनके द्वारा मुरु, निसुन्द, हयग्रीव, विरुपाक्ष, पंचनाद, अन्यान्यन असुर तथा नरकासुर का वध

जनमेजय ने पूछा– महामुने! रुक्मी के मारे जाने पर जब परमपराक्रमी महाबाहु श्रीकृष्ण द्वारका को लौट आये, तब उन्होंने क्या किया, यह मुझे बताइये।

वैशम्पायन जी कहते हैं– जनमेजय! श्रीमान यादवनन्दन पराक्रमी भगवान श्रीकृष्ण उन यादवों से घिरे हुए जब द्वारका को आये, तब उन्होंने उस पुरी का भली-भाँति नि‍रीक्षण किया। कमलनयन श्रीकृष्ण ने जो नाना प्रकार के धन और रत्न प्राप्त किये थे, उनका वे द्वारका में यथोचित रुप से संरक्षण करते थे और उन्हें हड़पने की इच्छा वाले राक्षसों को उन्होंने मार भगाया था।

वहाँ उनके मार्ग में दैत्य और दानव विघ्न डाला ‍करते थे। महाबाहु श्रीकृष्ण ने वर पाकर उन्मत्त हुए उन बड़े-बड़े असुरों को मार डाला। तत्पश्चात नरक नामक दानव ने भगवान के कार्य में विघ्र डालना आरम्भ किया। वह समस्त देवताओं को भयभीत करने वाला तथा देवराज इन्द्र का महान शत्रु था। समस्त देवताओं को बाधा देने वाला नरकासुर भूमि के भीतर मूर्ति[1] में स्थित होकर देवताओं और ऋषियों के प्रतिकूल आचरण किया करता था। भूमि का पुत्र होने से नरक को भौमासुर भी कहते हैं। उसने हाथी का रुप धारण करके प्रजापति त्वष्टा की पुत्री कशेरु के, जो चौदह वर्ष की अवस्था वाली तथा सुन्दर अंगों से सुशोभित थी, समीप जाकर उसे पकड़ लिया। नरकासुर प्राग्ज्योतिषपुर का राजा था। उसके शोक और भय नष्ट हो गये थे।

वह मोहवश सुन्दरी कशेरु को अपनी दोनों भुजाओं में दबाकर हर ले गया और उससे इस प्रकार बोला- 'देवि! देवता और मनुष्यों के पास जो नाना प्रकार के रत्न हैं, सारी पृथ्वी जिन रत्नों को धारण करती है तथा समुद्रों में जो रत्न संचित हैं, उन सबको आज से सभी राक्षस, दैत्य और दानव भी तुम्हें ही लाकर दिया करेंगे।' इस प्रकार भौमासुर ने नाना प्रकार के उत्तम रत्नों और भाँति-भाँति के वस्त्रों का उस समय अपहरण किया था। अपहरण करके भी उसने उन पर अधिकार नहीं किया (उन्हें अपने उपभोग में नहीं लाया)। गन्धर्वों की जो कन्याएँ थीं, उन्हें भी बलवान नरकासुर हर लाया था।

देवताओं और मनुष्यों की कन्याओं तथा अप्सराओं के सात समुदायों का भी उसने अपहरण कर लिया। इस प्रकार सोलह हजार एक सौ सुन्दरी स्त्रियाँ उसके घर में एकत्र हो गयीं। वे सब-की-सब सतियों के मार्ग का अनुसरण करके व्रत और नियमों के पालन में तत्पर हो एक वेणी धारण करती थीं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मूर्ति या शिवलिंग के आकार का कोई दुर्भेद्य गृह, जो पृथ्वी के भीतर गुफा में बनाया गया हो। शत्रुओं से आत्मरक्षा की दृष्टि से नरकासुर ने ऐसे निवास स्थान का निर्माण करा रखा था।

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