हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 64 श्लोक 1-17

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चतु:षष्टितम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण का नरकासुर के भवन में प्रवेश करके वहाँ के धन-वैभव तथा सोलह हजार कुमारियों को द्वारका भेजना और स्वयं देवलोक में जा ‍अदिति को कुण्डल दे वहाँ से पारिजात लेकर लौटना

वैशम्पायन जी कहते हैं– जनमेजय! इन्द्र के समान पराक्रमी भूमिपुत्र नरकासुर का वध करके इन्द्र के छोठे भाई श्रीकृष्‍ण ने उसके भवन का निरीक्षण किया। तदन्तर नरकासुर के धनागार (खजाने) में जाकर भगवान जनार्दन ने अक्षय धन और भाँति-भाँति के रत्न देखे। मणि, मोती, मूँगे, वैदूर्यमणि के ढेर, चन्द्रकान्तमणि की पर्वतोपम राशि तथा हीरों के संग्रह देखे। जाम्बूनद तथा शातकुम्भ नामक सुवर्णों की बनी हुई बहुत-सी ऐसी वस्तुएँ वहाँ दृष्टि गोचर हुई, जो प्रज्वलित अग्नि और शीत रश्मि चन्द्रमा के समान प्रकाशित हो रही थीं। बहुमूल्य शय्या तथा सिंहासन भी देखने में आये। वहीं उन्होंने वह विशाल छत्र भी देखा, जो वर्षा करने वाले मेघ के समान उज्ज्वल सुवर्ण की लाखों धाराएँ बहा रहा था, उसका सुन्दर दण्ड सुवर्ण का बना हुआ था तथा उसकी कान्ति चन्द्रमा के समान श्वेत वर्ण की थी।

हमने सुना है कि वह छत्र नरकासुर पहले वरुण के यहाँ से छीन लाया था। नरकासुर के घर में जितना रत्न और असंख्य धन देखा गया, उतना राजा कुबेर, इन्द्र और यम के पास भी नहीं था। रत्नों का वैसा संग्रह कुबेर आदि के यहाँ भी न तो कभी देखा गया और न सुना ही गया। भौमासुर, निसुन्द और दानव हयग्रीव के मारे जाने पर मरने से बचे हुए जो दानव और खजाने के रक्षक ‍थे, वे उन बहुमूल्य रत्नों और अन्तर:पुर की वस्तुओं को भगवान श्रीकृष्ण के पास ले आये, जिन्हें पाने और रखने की योग्यता एकमात्र श्रीकृष्ण में ही थी।

दैत्यों ने कहा– 'जनार्दन! ये जो नाना प्रकार के बहुसंख्यक मणिरत्न हैं तथा जो भयंकर रुप वाले गजराज हैं, जिनके ऊपर बिछायी जाने वाली कालीनें मूँगों से विभूषित हैं, जो सोने के तारों के बने हुए रस्सों से कसे जाते हैं, जिनकी जंजीरें बहुत बड़ी हैं, जो धनुष और तोमर आदि अस्त्र-शस्त्रों से सुशोभित होते हैं, जिनके अंकुश बड़े सुन्दर हैं तथा जो नाना प्रकार की सुन्दर पताकाओं द्वारा चितकबरे दिखायी देते हैं।

उन गजराजों की संख्या बीस हजार है। इनसे दूनी हथिनियाँ हैं। आठ लाख उत्तम देशी घोड़े हैं। इनके सिवा बहुगत-सी गौएँ हैं। इनमें से जिनके लिये आपको जितनी आवश्यकता हो, उतनी संख्या में हम इन सबको वृष्णि और अन्धकवंशी यादवों के निवास स्थान द्वारका में पहुँचा देंगे। प्रभो! महीन ऊनी वस्त्र, अनेक प्रकार की शय्याएँ, बहुत-से आसन, इच्छानुसार बोली बोलने वाले और देखने में सुन्दर पक्षी, चन्दन और अगुरुकाष्ठ, कालागुरु तथा तीनों लोकों में जो धन और रत्न यहाँ संचित हैं, उन सब वर आपका धर्मत: अधिकार हो गया है। हम उन सबको वृष्यन्धकपुरी द्वारका में पहुँचा देंगे। देवताओं और गन्धर्वों के यहाँ जो वैभव है, वे सब यहाँ नरकासुर के भवन ‍में विद्यमान हैं।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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