हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 103 श्लोक 1-20

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: त्र्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण की संतति का वर्णन तथा वृष्णिवंश का उपसंहार

जनमेजय ने पूछा- भगवन! भगवान श्रीकृष्ण की कई हजार रानियों में से आठ को प्रमुख बताया गया है। उन आठों की संतानें कौन-कौन-सी थीं? यह आप मुझे बताइये। वैशम्‍पायन ने कहा- राजन! प्रधानत: आठों पटरानियां पुत्रवती थीं, ऐसा माना गया है। उनकी सभी संतानें वीर थीं। उन रानियों के जो-जो संताने हुईं, मैं बताता हूं, सुनो। रुक्मिणी, सत्यभामा, देवी नाग्‍नजिती (सत्‍या), शिबिदेश की राजकुमारी सुदत्ता, मनोहर हास वाली लक्ष्‍मणा, मित्रविन्दा, कालिन्‍दी, जाम्बवती, पौरवी और मद्रदेश की राजकुमारी सुभीमा- ये श्रीकृष्ण की मुख्‍य रानियां थी। इनमें से रुक्मिणी के पुत्रों का वर्णन करता हूं, सुनो। रुक्मिणी के गर्भ से पहले शुभ लक्षण सम्‍पन्न प्रद्युम्न का जन्‍म हुआ, जिन्‍होंने आगे चलकर शम्‍बरासुर का वध किया था। उनके दूसरे पुत्र चारुदेष्ण थे, जो वृष्णिवंश में सिंह के समान पराक्रमी और महारथी वीर थे। तीसरे चारुभद्र, चौथे चारुगर्भ, पांचवे सुदेष्‍ण और छठे द्रुम थे, सातवें सुषेण, आठवें चारुगुप्त नवें पराक्रमी चारुचन्द्र और दसवें चारु थे। चारु सबसे छोटे थे। इनके सिवा रुक्मिणी के एक कन्‍या भी उत्‍पन्न हुई थी, जिसका नाम चारुमती था, सत्‍यभामा के गर्भ से भानु, भीमरथ, क्षुप, रोहित, दीप्तिमान, ताम्रजाक्ष और जलातन्‍तक नामक पुत्र उत्‍पन्न हुए। भगवान् गुरुड़ध्‍वज से इनकी चार बहिनें उत्‍पन्न हुई थीं, जिनके नाम थे- भानु, भमलिका, ताम्रपर्णी और जलन्धमा

जाम्‍बवती के ज्‍येष्ठ पुत्र साम्‍ब उत्‍पन्न हुए, जो युद्ध में बड़ी शोभा पाते थे। इनके सिवा मित्रवान, मित्रविन्द, मित्रबाहु और सुनीथ- ये चार पुत्र और थे। जाम्‍बवती के मित्रवती नाम वाली एक कन्‍या भी उत्‍पन्न हुई थी। अब नाग्‍नजिती की संतानों का वर्णन सुनो। नाग्‍नजिती के भद्रकार और भद्रविन्‍द नामक दो पुत्र हुए थे तथा भद्रवती नाम वाली एक कन्‍या भी उत्‍पन्न हुई थी। शिबिदेश की राजकुमारी सुदत्ता के गर्भ से संग्रामजित, सत्‍यजित, सेनजित और शूरवीर सपत्‍नजित– इन चार पुत्रों का जन्‍म हुआ था।। माद्री सुभीमा के वृकाश्‍व, वृकनिर्वृति तथा कुमार वृकदीप्ति- ये तीन पुत्र थे। अब लक्ष्‍मणा की संतानों का परिचय सुनो। गात्रवान्, गात्रगुप्त तथा पराक्रमी गात्रविन्द- ये तीन पुत्र लक्ष्‍मणा के गर्भ से उत्‍पन्न हुए थे, साथ ही इनकी छोटी बहिन गात्रवती का भी जन्‍म हुआ था। कालिन्‍दी के दो पुत्र हुए- अश्रुत और श्रुतसम्ति। अधुसूदन अश्रुत नामक पुत्र को श्रुतसेना नाम वाली पत्नी को गोद में दे दिया। उसे देकर भगवान श्रीकृष्ण बड़े प्रसन्न हुए और अपनी उस पत्नी से बोले- यह सदा के लिये तुम दोनों का पुत्र रहे। श्रीकृष्ण की बृहती नाम वाली पत्नी के गर्भ से गद की उत्‍पत्ति बतायी जाती है। शैव्‍या के गर्भ से अंगद, कुमुद और श्‍वेत नामक पुत्र की उत्‍पत्ति कही गयी है। शैव्‍या के श्वेता नाम वाली एक कन्‍या भी थी। सुदेवा के गर्भ से अगावह, सुमित्र, शुचि, चित्ररथ तथा चित्रसेन- ये पांच पुत्र और चित्रा तथा चित्रवती- ये दो कन्‍याऐं उत्‍पन्न हुई थीं। वनस्‍तम्‍ब, स्तम्बवन, निवासन तथा अवनस्तम्ब- ये चार पुत्र और स्तम्बवती नाम वाली कन्‍या– इन सबकी उत्‍पत्ति कौशिकी के गर्भ से हुई थी। उपसन्न, शंक्कु, व्रजांशु और क्षिप्र- ये चार पुत्र सुतसोमा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। यौधिष्ठरी के गर्भ से युधिष्ठिर नामक पुत्र का जन्‍म हुआ था। इसके सिवा दो पुत्र और उत्‍पन्न हुए थे- कपाली तथा गरुड़। ये दोनों ही विचित्र रीति से युद्ध करने वाले थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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