हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 117 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 117 श्लोक 1-5

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वैशम्पायन उवाच

क्रीडाविहारोपगत: कदाचिदभवद् भव:।
देव्या सह नदीतीरे रम्ये श्रीमति स प्रभु:।।1।।

शतानि तत्राप्सरसां चिक्रीडुश्च समन्तत:।
सर्वर्तुकवने रम्येन गन्धर्वपतयस्तथा।।2।।

कुसुमै: पारिजातस्य पुष्पै: संतानकस्य च।
गन्धोद्दाममिवाकाशं नदीतीरं तु सर्वश:।।3।।

वेणुवीणामृदंगैश्च पणवैश्च सहस्रश:।
वाद्यमानै: स शुश्राव गीतमप्सरसां तदा।।4।।

सूतमागधकल्पैश्चास्तुवन्नप्सरसां गणा:।
देवदेवं सुवपुषं स्त्रग्विणं रक्तसवाससम्।।5।।
श्रीमहेशं देवदेवमर्चयन्ति मनोरमम्।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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