हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 97 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 97 श्लोक 1-5

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वैशम्पातयन उवाच

जगतश्चक्षुषि ततो मुहूर्ताभ्युदिते रवौ।
प्रादुरासीद्धरिर्देवस्तार्क्ष्येुणोरगशत्रुणा।।1।।

हंसवायुमनोभिश्च सुशीघ्रतरग: खग:।
तस्थौ वियति शक्रस्य समीपे कुरुनन्दन।।2।।

समेत्य च यथान्यायं कृष्णोम वासवसंनिधौ।
पांचजन्यं हरिर्दध्मौ दैत्यानां भयवर्द्धनम्।।3।।

तं श्रुत्वाभ्यागतस्तत्र प्रद्युम्नो परवीरहा।
वज्रनाभं जहीत्युक्ता: केशवेन त्वनरेति च।।4।।

तार्क्ष्यमारुह्य गच्छेगति पुनरेव प्रणोदित:।
चकार स तथा वीर: प्रणिपत्य सुरोत्तमौ।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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