हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्तसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-16 हिन्दी अनुवादपुण्यक विधि के वर्णन का उपक्रम जनमेजय ने पूछा- द्विजश्रेष्ठ! पुण्यकों की उत्पत्ति किस प्रकार हुई, यह मुझे बताइए, क्योंकि द्वैपायन व्यास की कृपा से आपको सब कुछ विदित है। वैशम्पायन जी कहते हैं- धर्मात्माओं में श्रेष्ठ नरेन्द्र! पूर्वकाल में भगवती उमा ने पुण्यक व्रत की विधि का प्रतिपादन किया है। उसके अनुसार लोक में जिस विधान से व्रत किया जाता है, उसे बताता हूँ, सुनो। जब अनायास ही महान कर्म करने वाले श्रीकृष्ण स्वर्ग से पारिजात वृक्ष को द्वारका में ले गये, उस समय बुद्धिमान मुनिश्रेष्ठ नारद जी भी वह पधारे। निष्पाप नृपश्रेष्ठ! जब महादेव जी की आज्ञा से देवासुर संग्राम का अवसर उपस्थित था और षटपुरवासी दानवों का घोर वध होने वाला था, उसी समय की बात है। नरेश्वर! धर्मज्ञों में श्रेष्ठ विप्रवर नारद जी श्रीकृष्ण के साथ बैठे थे उस समय भीष्मककुमारी रुक्मिणी के साथ जाम्बवती देवी, भामिनी सत्यभामा, गान्धार राजकुमारी योगयुक्ता शैब्या तथा श्रीकृष्ण की अन्य बहुत-सी कुलवती, सुशीला, गुणवती, धर्मशीला एवं पतिव्रता पत्नियां भी आयी हुई थीं। रुक्मिणी ने कहा– 'धर्मात्माओं और ज्ञानियों में श्रेष्ठ मुने! आप मुझे पुण्यकों की उत्पत्ति वृत्तान्त पूर्ण रूप से बताने की कृपा करें। वक्ताओं में श्रेष्ठ देवर्षे! उस पुण्यक व्रत की विधि, फलयोग और दानकाल क्या है? उसकी सिद्धि कैसे होती है? यह सब बताइये। हमें उसके विषय में सुनने के लिये बड़ी उत्कण्ठा है?' नारद जी ने कहा– धर्म को जानने वाली निष्पाप विदर्भनन्दिनी! देवि! पूर्वकाल में उमा देवी ने पुण्यों की जैसी विधि बतायी थी, उसे तुम अपनी सौतों के साथ सुनो। देवि! पवित्र व्रत धारण करने वाली उमादेवी ने जब पुण्यों का व्रत किया था, उस समय व्रत के अन्त में उन्होंने अपनी सखियों को निमन्त्रित किया। प्रजानाथ! कुरुनन्दन! अनायास ही सृष्टि सम्बन्धी महान कर्म करने वाले प्रजापति दक्ष की अदिति आदि समस्त पुत्रियां, लोक विख्यात पतिव्रता पुलोमकमारी शची देवी, सोम की प्यारी पत्नी सती साध्वी महाभागा रोहिणी, पूर्वाफाल्गुनी, रेवती, शतभिषा और मघा–ये सब-की-सब निमन्त्रित होकर वहाँ आयी थीं। इन सबने पूर्वकाल में सती महादेवी उमा की अराधना की थी। भारत! गंगा, सरस्वती, वेणी, गोदावरी, वैतरणी और गण्डकी– ये तथा और भी बहुत-सी रमणीय सरिताएं वहाँ आयी थीं। लोपामुद्रा और अन्य शुभ लक्षणा सती देवियां, जो अपने धर्म से इस जगत को धारण करती हैं, वहाँ उपस्थित थीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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