हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 42 श्लोक 1-11

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्विचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद

जरासन्ध की सेना का वर्णन, उनका सेना को पर्वत पर आक्रमण करने की आज्ञा देना, दमघोष की सम्मति से गोमन्त पर्वत में आग लगाया जाना, पर्वत का जलना तथा बलराम और श्रीकृष्ण का पर्वत से कूद कर राजाओं की सेना में आ पहुँचना

वैशम्पायन जी कहते हैं– जनमेजय! तदनन्तर समस्त राजाओं का राजा महातेजस्वी जरासन्ध वहाँ आ पहुँचा। उसके पीछे अपनी–अपनी सेनाओं के साथ दूसरे भी बहुत–से नरेश थे। कहीं अस्त्र–शस्त्र के ज्ञाता पुरुषों द्वारा भली-भाँति सिखाए गए विशाल एवं प्रचण्ड बलशाली अश्वों से युक्त रथ युद्धोपयोगी सामग्रियों से संपन्न होकर आगे बढ़ रहे थे। उन रथों की गति कहीं भी अवरुद्ध नहीं होती थी। कहीं बहुसंख्यक हाथी चल रहे थे, जिन्हें सोने की जंजीरों से कसा गया था। उनके दोनों पार्श्व में बड़े–बड़े घंटे लटक रहे थे। वे सभी हाथी मेघों की घटा के समान जान पड़ते थे। उनके ऊपर अच्छे महावत बैठे थे तथा रणगर्वित कुश योद्धाओं द्वारा उन्हें सुसज्जित किया गया था। कहीं घुड़सवार योद्धा घोड़ों पर अच्छी तरह से सवार थे। उनके वे घोड़े वायु के समान वेगशाली थे और उछलते–कूदते हुए आगे बढ़ते समय आकाश में उड़ते हुए पक्षियों के समान प्रतीत होते थे।

बलवानों में श्रेष्ठ पैदल सैनिक भी ढाल और तलवार लिए प्रचण्ड रूप धारण करके आगे बढ़ते थे। वे हजार–हजार की टोलियों में एक साथ चलते और केंचुल से छूटे हुए सर्पों के समान उछलते थे। इस प्रकार मंडराते हुए बादलों के समान चतुरंगिणी सेनाएं साथ लेकर वीर–व्रत को धारण करने वाला बलवान राजा जरासन्ध युद्ध के लिए आगे बढ़ रहा था। वह राजा पहियों के घर्घर घोष से युक्त रथों, (चिंघाड़ते हुए) मतवाले हाथियों, हिनहिनाते हुए घोड़ों तथा गर्जते हुए पैदल सैनिकों द्वारा संपूर्ण दिशाओं एवं समस्त पर्वतीय कन्दराओं को प्रतिध्वनि करता हुआ सेना के साथ समुद्र के समान दिखाई देता था।

भूमिपालों की वह सेना हृष्ट–पुष्ट योद्धाओं से परिपूर्ण थी। गर्जने और ताल ठोंकने की गंभीर ध्वनि से गर्जती हुई मेघों की घटा के समान प्रतीत होती थी। वायु के समान तीव्र गति से चलने वाले रथों, काले मेघों के समान प्रतीत होने वाले हाथियों, श्वेत बादलों के समान घोड़ों तथा कवच आदि से सुसज्जित पैदल योद्धाओं से मिश्रित हुई वह सेना सब ओर से सुशोभित हो रही थी। मतवाले हाथियों से व्याप्त हुई वह विशालवाहिनी वर्षा–ऋतु में समुद्र के भीतर लक्षित होने वाले मेघों के समूह की शोभा धारण करती थी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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