हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 106 श्लोक 1-20

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षडधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

शम्बरासुर और प्रद्युम्न का मायामय युद्ध, शम्बर की चिन्ता, देवराज इंद्र की आज्ञा से नारद जी का प्रद्युम्न को उनके पूर्वस्वरूप का स्मरण दिलाना और आवश्यक कर्तव्य सुझाना

वैशम्पायन जी कहते हैं- प्रजानाथ! तब शम्बरासुर ने कुपित होकर अपने सारथी से कहा- 'वीर! तुम शीघ्र ही मेरे रथ को शत्रु के सामने ले चलो, जिससे अपना अप्रिय करने वाले इस प्रद्युम्न को मैं अपने बाणों से मार डालूँ। तब स्वामी का यह वचन सुनकर उनका प्रिय करने वाले सूत ने उस सुवर्ण भूषित रथ को आगे बढ़ाया। उस रथ को आते देख प्रद्युम्न के नेत्र हर्ष से खिल उठे। उन्होंने अत्यन्त कुपित हो धनुष लेकर उस पर एकसुवर्णभूषित बाण रखा और उसे बाण से शम्बरासुर का क्रोध बढ़ाते हुए उसे रणभूमि में घायल कर दिया। उस बाण ने उसकी छाती में चोट पहुँचायी थी, इससे वह देवशत्रु शम्बर अत्यन्त व्याकुल हो अचेत हो गया और रथशक्ति का सहारा लेकर टिका रहा। फिर होश में आने पर कुपित हुए। शम्बरासुर ने धनुष हाथ में ले सात पैंने बाणों द्वारा श्रीकृष्णकुमार पर प्रहार किया। उन बाणों को अपने पास पहुँचने से पहले ही प्रद्युम्न सात सायकों से मारकर सात बार खण्डित किया, साथ ही सत्तर तीखे बाणों से शम्बरासुर को घायल कर दिया। इसके बाद गीध और मोर की पाँख लगे हुए एक हजार बाणों की क्रोधपूर्वक वर्षा करके उन्होंने पुन: शम्बरासुर को आहत कर दिया, ठीक उसी तरह जेसे मेघ जल की धाराओं से पर्वत को आप्लावित कर देता है। समस्त दिशाएं और विदिशाएं बाण धारा से आवृत हो गयीं। आकाश में अन्धकार छा गया। दिनकर सूर्य का दीखना बंद हो गया।

जब शम्बरासुर ने वैद्युतास्त्र का प्रयोग करके अन्धकार का निवारण कर दिया और प्रद्युम्न के रथ की बैठक में बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। राजन! प्रद्युम्न ने अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए झुकी हुई गाँठ वाले बाण से शत्रु के उस अस्‍त्र जाल के अनेक टुकडों में छिन्न-भिन्न कर दिया। श्रीकृष्णकुमार द्वारा जब बाणों की वह महावृष्टि शान्त कर दी गयी, तब कालशम्बर ने माया द्वारा वृषों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। वृक्षों की उस वर्षा को बढ़ती देख प्रद्युम्न क्रोध से मूर्च्छित-से हो गये, फिर तो उन्होंने आग्नेयास्त्र का प्रयोग किया और उसके द्वारा समस्त वृक्षों का नाश कर डाला। वृक्षों की वर्षा नष्‍ट हो जाने पर उसने शिला समूह बरसाना आरम्भ किया, परंतु प्रद्युम्न युद्ध स्थल में वायु व्यास्त्र का प्रयोग करके उन शिलाओं को दूर हटा दिया। प्रजानाथ! तब प्रतापी देवशत्रु शम्बर ने दूसरी माया प्रकट की। उसने धनुष तानकर प्रद्युम्न के रथ पर सिंह, व्याघ्र, वराह, तरक्षु (सेई), रीछ, वानर, मेघों के समान काले-काले हाथी, घोड़े और ऊँट के रूपों में बाणों का प्रहार किया। प्रद्युम्न ने गान्धर्वास्त्र का प्रयोग करके उन सब के टुकडे़-टुकडे़ कर डाले। प्रद्युम्न ने वह माया नष्ट कर दी, यह देखकर क्रोध से मूर्च्छित हुए शम्बरासुर ने दूसरी माया का प्रयोग किया। उसने साठ वर्षों की अवस्था वाले नवयौवन सम्पन्न बहुत-से गजराज प्रकट किये, जिनके मस्तक से मद की धार फूट रही थी। उनके ऊपर अच्छे-अच्छे महावत बैठे थे। उन्हें युद्ध की सज्जा से सजाया गया था। वे सब-के-सब युद्ध कला में चतुर जान पड़ते थे। उस गजाकार माया को अपनी ओर आती देख कमलनयन महामना श्रीकृष्णकुमार ने सिंहरूपिणी माया के प्रयोग का विचार किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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