हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 68 श्लोक 1-10

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण का पारिजात वृक्ष माँगने के लिये नारद जी के द्वारा इन्द्र के पास संदेश भेजना और न देने पर उन्हें गदा मारने की धमकी देना


वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनंतर अनंत पराक्रमी भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्रलोक को जाने की इच्छा वाले मुनि श्रेष्ठ नारद जी से वहाँ इस प्रकार कहा- 'धर्म के तत्त्व को जानने वाले निष्पाप महर्षे! आप स्वर्ग में आकर (वहाँ उत्सव देखने के लिये पधारे हुए) बुद्धिमान त्रिपुरविनाशक देव रुद्र के सदस्यों (पार्षद गणों) का दर्शन करके मेरे शब्दों में पाकशासन इन्द्र जो पुराना (वामनावतार के समय का) भ्रातृभाव है, उसे तो आप जानते ही हैं। उसी को सादर सामने रखते हुए, उनसे इस तरह बात कीजियेगा, जिससे मेरी और से आज्ञा देने का भाव प्रकट न हो।'

नारद जी से ऐसा कहकर श्रीकृष्ण ने अपना संदेश इस प्रकार उपस्थित किया- 'देवराज! पूर्वकाल में धर्मात्माओं में उत्तम मुनिश्रेष्ठ भगवान कश्यप ने देवमाता अदिति को सुख पहुँचाने के लिये जिस पारिजात वृक्ष की सृष्टि की थी, वह सब वृक्षों में श्रेष्ठ है और दान में दिए जाने पर अत्यंत सौभाग्य तथा पुण्य प्रदान किया है। अमरश्रेष्ठ सुनने में आया है कि पहले सदा धर्म में तत्पर रहने वाली अदिति आदि देवियों ने धर्म के लिये ही आपके उस उत्तम वृक्ष को व्रतपालनपूर्वक (पतिसहित) दान कर दिया था (और नारद जी ने पुन: आपको लौटाया था)। प्रभो! इस बात को सुनकर मेरी पत्नियाँ भी पुण्य दान धर्म तथा मेरी प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये उसका दान करना चाहती हैं। इसीलिये आपके इस भाई ने उस पारिजात नामक महान वृक्ष को द्वारकापुरी में मँगवाया है। वहाँ दान का कार्य सम्पन्न हो आने पर आप पुन: उस वृक्ष को स्वर्गलोक में ले जा सकते हैं।'

अब वे नारद जी को सम्बोधित करके बोले- 'भगवन! मुनिश्रेष्ठ! बलासुर का भेदेन करने वाला ऐश्वर्यशाली इन्द्र को आप मेरा संदेश इसी रुप में सुनाइयेगा। इस विषय में आपको वैसा-ही-वैसा प्रयत्न करना चाहिये, जिससे देवेश्वर इन्द्र वह तरुश्रेष्ठ पारिजात मुझे दे दें। तपोवन! दूत में जितने गुण होने चाहिये, वे सब मुझे आपके भीतर दिखायी देते हैं। मेरे मन में आपको सौंपे गये सभी कार्यों की सम्यक रुप सिद्धि के लिये निश्चित सम्भावना बनी हुई है।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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