हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 70 श्लोक 1-15

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण के द्वारा गदा प्रहार की धमकी सुनकर कुपित हुए इन्द्र का नारद जी से उनके बर्ताव की कटू आलोचना करना और युद्ध किये बिना पारिजात-वृक्ष को न देने का ही निश्चय करना

वैशम्पायन जी कहते हैं- कुरुनन्दन! देवराज इन्द्र की बात सुनकर धर्मज्ञों में श्रेष्ठ तथा बातचीत करने की कला जानने वाले धर्मात्मा नारद जी ने यह बात कहीं- ‘महाबाहु मधुसुदन! मेरे मन में तुम्हारे प्रति बहुत आदर हैं, इसलिये मुझे तुम्हारे हित की बात अवश्य बतानी चाहिये। मैं तुम्हारे इस विचार को जानता था; क्योंकि तुमने पहले महादेव जी के मांगने पर भी यह परिजात-वृक्ष उन्हें नहीं दिया था; इसलिये मैंने तुम्हारी ओर से श्रीकृष्ण को सब कुछ बताया था। तुमने पारिजात न देने के विषय में जो कारण बताये हैं, उन्हें भी मैंने संक्षेप से उनको दर्शाया था: परंतु भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें स्वीकार नहीं किया, यह मैं तुमसे सच्ची बात बता रहा हूँ। मेरी बात का उत्‍तर देते हुए कमलनयन श्रीकृष्ण कहने लगे ‘मैं उपेन्द्र (इन्द्र का छोटा भाई) हूं; अत: महेन्द्र को सदा ही मेरा लाड़-प्यार करना चाहिये’।

वृत्रासुर विनाशन देव! मैंने बारम्बार उन्हें कारण दिखाये, परंतु उनका विचार नहीं बदला। इन्द्र! मेरी बात के अन्त में पुरुषश्रेष्ठ भगवान मधुसूदन ने कुछ रुष्ट–से होकर उत्‍तर देते हुए कहा- ‘मुने! आपका कल्याण हो। यदि समस्त देवता, गन्धर्व, राक्षस, असुर, यक्ष और नाग भी उद्यत होकर आ जायँ तो वे मेरी प्रतिज्ञा को नष्ट करने में समर्थ नहीं हो सकते, नहीं हो सकते। यदि आपके याचना करने पर अमरेश्वर इन्द्र पारिजात नहीं देंगे तो मैं उनके उस वक्ष:स्थल पर, जहाँ का अनुलेपन शची के आलिंगन से मिट गया है, अपनी गदा का प्रहार करुंगा।'

महेन्द्र! तुम्हारे भाई उपेन्द्र का यही अन्तिम निश्चय है। अब यहाँ तुम जो न्यायोचित कार्य समझो, उसका विचार करके वही करो। देवेश्वर! मैं तुम्हें तत्त्व और हित की बात बताता हूं, सुनो, मुझे पारिजात का द्वारका में ले जाया जाना ही ठीक जंचता है। नरेश्वर! जब नारद जी ने इस प्रकार सुस्पष्ट बात कह दी, तब बलासुर का विनाश करने वाले सहस्र नेत्रधारी इन्द्र रोष के आवेश में आकर बोले- 'तपोधन! यदि श्रीकृष्ण अपने निरपराध एवं ज्येष्ठ सहोदर भाई के प्रति ऐसा अनुचित बर्ताव करने के लिये उद्यत हैं तो अब क्या किया जा सकता है?

नारद! श्रीकृष्ण ने पहले भी मेरे प्रतिकूल बहुत-से कार्य किये हैं; परंतु यह मेरा छोटा भाई है, ऐसा समझकर मैंने सदा उन बातों को सहन किया हैं। पहले की बात हैं, ये खाण्डव वन में अर्जुन का रथ हांक रहे थे, उस समय उस वन में लगी हुई प्रचण्ड आग को बुझाने के लिये मैंने जो मेघ नियुक्त किये थे, मेरे उन सभी मेघों का इन्होंने निवारण कर दिया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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