हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षट्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवादबलराम जी की व्रज यात्रा तथा उनके द्वारा यमुना जी का आकर्षण वैशम्पायन जी कहते हैं– जनमेजय! कुछ काल के अनन्तर गोपों के सौहार्द का स्मरण करके श्रीकृष्ण की अनुमति ले बलराम जी अकेले ही व्रज में गए। वहाँ जाकर उन्होंने बहुत से बड़े–बड़े सुगन्धित वन तथा सरोवर देखे, जो पहले उनके उपभोग में आ चुके थे। श्रीकृष्ण के पूर्वज बलराम जी बड़े वेग से उस व्रज में प्रविष्ट हुए। उस समय वे प्रभावशाली संकर्षण वनवासियों के योग्य रमणीय वेषभूषा से अलंकृत थे। शत्रुदमन बलराम पहले की ही भाँति उसी तौर तरीके से अवस्था की छोटाई-बड़ाई के अनुसार यथा योग्य सब गोपों के साथ मिले और प्रेमपूर्वक उनसे बातचीत करने लगे। उन्होंने पूर्ववत सबका हर्ष बढ़ाते हुए सबसे उसी तरह बातें कीं तथा गोपियों के साथ भी पहले जैसी ही मधुर चर्चाएं छेड़ दीं। रमाने वाले (मन को आनंदित करने वाले) पुरुषों में श्रेष्ठ बलराम जी परदेश में रहकर फिर लौटे थे और गोपों के बहुत ही प्रिय थे। अत: मधुरभाषी बड़े–बूढ़े गोपों ने उनसे कहा- 'यदुकुल को आनंदित करने वाले महाबाहो! तुम्हारा स्वागत है। तात! आज हम बहुत खुश हैं, क्योंकि हमें दीर्घकाल के बाद तुम्हें देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वीर! तुम जो पुन: लौटकर यहाँ आए हो, इससे हम बहुत संतुष्ट हैं। शुत्रुओं को भय देने वाले वीर बलराम की तीनों लोकों में प्रसिद्धि है। वीर! यादवनंदन! यहाँ आकर तुमने हमारा गौरव बढ़ाया है, यह तुम्हारे लिए उचित ही है। अथवा तात! अपनी जन्मभूमि में सभी प्राणियों को सुख मिलता है। अमलानन! तुमने जो हम लोगों पर कृपा दृष्टि की है, इससे निश्चय ही अब हम देवताओं के लिए माननीय हो गए। तात! हम लोग प्रतिदिन तुम्हारा शुभागमन चाहते थे। बड़े सौभाग्य की बात है कि तुम दोनों भाइयों के द्वारा वे मल्ल मारे गए, कंस भी मार गिराया गया तथा उग्रसेन का राज्य पर अभिषेक हो गया। उनके महात्मापन (साधु स्वभाव) के कारण ही सब लोगों ने उनको राज्य पर अभिषिक्त किया है। हमने यह भी सुना है कि समुद्र में तिमि (पञ्चजन नामक मगरमच्छ)– के साथ तुम लोगों का युद्ध हुआ था। उसमें पञ्चजन मारा गया। तत्पश्चात मथुरा में जरासन्ध के साथ बड़ा भारी युद्ध हुआ। इतना ही नहीं, हमारे सुनने में यह भी आया है कि गोमन्त पर्वत के निकट क्षत्रियों के साथ तुम लोगों का घोर युद्ध हुआ था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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