हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 121 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 121 श्लोक 1-5

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वैशम्पायन उवाच

ततोऽनिरुद्धस्यय गृहे रुरुदु: सर्वयोषित:।
प्रियं नाथमपश्यनन्त्यु: कुरर्य इव संघश:।।1।।

अहो धिक्किमिदं नाथनाथे कृष्णे व्यास्थिते।
अनाथा इव संत्रस्ता रुदिमो भयपीडिता:।।2।।

यस्येन्द्राप्रमुखा देवा: सादित्या: समरुद्गणा:।
बाहुच्छा‍यामुपाश्रित्यु वसन्ति दिवि निर्वृता:।।3।।

तस्यो्त्पान्नतमिदं लोके भयदस्य महाभयम्।
तस्या्निरुद्ध: पौत्रस्तु वीर: केनापि नो हृत:।।4।।

अहो नास्ति भयं नूनं तस्य लोके सुदुर्मते:।
वासुदेवस्य य: क्रोधमुत्पादयति दु:सहम्।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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