हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 48 श्लोक 1-11

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण के आगमन से चिन्तित हुए राजाओं की सभा में जरासंध और सुनीथ का भाषण

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! अपनी महिमा से कभी च्युत न होने वाले श्रीकृष्ण को गरुड़ के साथ आया देख सभी श्रेष्ठ नरपति चिन्तामग्न हो गये। राजन! वे भयानक पराक्रमी राजा नीति-शास्त्र के भी अच्छे ज्ञाता तथा मन्त्रणा करने में कुशल थे। उन्होंने परस्पर मन्त्रणा करने के लिये एक सभा में एकत्र होने का विचार किया। फिर जैसे देवता देवसभा में विराजमान होते हैं, उसी प्रकार वे श्रेष्ठ नरेशगण राजा भीष्मक की सुवर्णभूषित रमणीय सभा में जाकर विचित्र-बिछौनों से युक्त भाँति-भाँति के सिंहासनों पर बैठे। उनके बीच में महाबली, महातेजस्वी और महाबाहु जरासंध ने उसी तरह भाषण देना आरम्भ किया, जैसे देवराज इन्द्र देवताओं के समक्ष प्रवचन करते हैं।

जरासंध बोला- इस सभा में उपस्थित हुए वक्ताओं में श्रेष्ठ नरेशों! मैं यहाँ अपनी बुद्धि के अनुसार जो कुछ कह रहा हूँ, उसे आप लोग तथा परम बुद्धिमान राजा भीष्मक भी सुने। वे जो श्रीकृष्ण नाम से विख्यात बलवान वसुदेवपुत्र इस कुण्डिनपुर में गरुड़ के साथ पधारे हैं, बड़े तेजस्वी हैं। यहाँ की राजकन्या को प्राप्त करने के लिये ही वे यादवों से घिरे हुए यहाँ तक आये हैं। जिस तरह भी कन्या की प्राप्ति हो सके वैसा प्रयत्न वे अवश्य करेंगे। श्रेष्ठ नरपतियों! यहाँ जो सुनीति से युक्त तथा समृद्धि का हेतुभूत कारण (उपाय) काम में लाने योग्य है, उसे अपने बलाबल का विचार करके आप लोग करें।

वसुदेव के ये दोनों पुत्र महान पराक्रमी हैं। ये लोग पर्वतों में श्रेष्ठ गोमन्त पर गरुड़ को साथ लिये बिना पैदल ही आये थे, तो भी इन्होंने जो घोर महायुद्ध किया था, वह आप लोगों को विदित ही है। इस समय जब ये यदुवंशी, वृष्णिवंशी, भोजवंशी तथा अन्धकवंशी महारथियों के साथ मिलकर युद्ध करेंगे, तब इनका संग्राम कैसा होगा- (यह आप लोग स्वयं अनुमान कर सकते हैं)। राजकन्या के लिये यत्न करते हुए इन गरुड़वाहन भगवान विष्णु के साथ युद्ध में देवताओं सहित इन्द्र ही क्यों न हों, कौन ठहर सकेगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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