स्याम सखि नीकै देखे नाहि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मारू


स्याम सखि नीकै देखे नाहि।
चितवत ही लोचन भरि आए, बार बार पछिताहि।।
कैसैहुँ करि इकटक मैं राखति, नैकहिं मै अकुलाहि।
निमिष मनौ छवि पर रखवारे, तातैं अतिहिं डराहि।।
कहा करै इनकौ कह दूषन, इन अपनी सी कीन्ही।
‘सूर’ स्यामछवि पर मन अटक्यौ, उन सब सोभा लीन्ही।।1840।।

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