मनमधुकर पदकमल लुभान्यौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठी


मनमधुकर पदकमल लुभान्यौ।
चितचकोर चंदनख अटक्यौ, इकटक पलक भुलान्यौ।।
बिनही कहैं गए उठि मोतै, जात नही मै जान्यौ।
अब देखौ तनु मैं वै नाही, कहा जियहिं धौ आन्यौ।।
तब तै फेरि तक्यौ नहि मो तन, नखचरननि हित मान्यौ।
‘सूरदास’ वे आपु स्वारथी, परबेदन नहिं जान्यौ।।1839।।

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