स्याम रतिअंत रस यहै कीन्हौ।
कहत पुनि पुनि कहा अंग अंबर सजहु, मैं रही सकुचि, गहि आप लीन्हौ।।
कियौ तब मै कहा, लरी सारंग सो, सारँगधर धरनि तव चरन चाँपी।
सेष सहसौ फननि मनिनि की ज्योति अति, त्रास तै कंठ लपटाइ काँपी।।
रही उनकी टेक, चलै मेरी कहा, धरनि गिरिराज-भुज-सबलधारी।
'सूर' प्रभु के सखी सुनहु गुन रैनि के, वै पुरुष मैं कहा करौ नारी।।2672।।