राधा अब जनि कछू दुरावै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ


राधा अब जनि कछू दुरावै।
हा हा करि चरननि सिर नावति, अपनी सौह दिवावै।।
वहै कथा मोसौ कहि प्यारी, चरित कहा हरि कीन्हौ।
जा रस मैं तू मगन भई है, कौन अंग सुख दीन्हौं।।
उछलित भयौ सुधा उर घट तै, मुख मारग न सम्हारै।
'सूर' स्याम रस छकी राधिका, कहत न बनै बिचारै।।2671।।

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