स्याम यह तुमसौं क्यौं न कहौं।
जहाँ तहाँ घर घर कौ घैरा, कौनी भाँति सहौं।।
पिता कोपि करवाल गहत कर, बंधु बधन कौं धावै।
मातु कहै कन्या कुल कौ दुख, जनि कोऊ जग जावै।।
बिनती एक करौं कर जोरे, इनि बीथिनि जनि आवहु।
जौ आवहु तौ मुरलि-मधुर-धुनि,मो जनि कान सुनावहु।।
मन क्रम बचन कहति हौं साँची, मैं मन तुमहिं लगायौ।
सूरदास-प्रभु अंतरजामी, क्यौं न करौ मन भायौ।।1684।।