स्याम छवि लोचन भटकि परे -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


स्याम छवि लोचन भटकि परे।
अतिही भए विहाल सखी री, निसि दिन रहत खरे।।
हम तै गए लूटि लैवे कौ, ह्याँ सो परे अगोट।
अपनौ कियौ तुरत फल पायौ, राखति घूंघट ओट।।
इकटक रहत पराऐ बस भए, दुख सुख समुझि न जाइ।
'सूर' कहौ ऐसौ को त्रिभुवन, आवे सिंधु थहाइ।।2311।।

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