भई गई ये नैन न जानत।
फिरि फिरि जात लहत नहि सोभा, हारैहु हार न मानत।
बूझहु जाइ रहत निसि बासर, नैकु रूप पहिचानत?
सुनहु सखी सतरात इते पर, हम पर भौहै तानत।।
झूठै कहत स्याम अँग सुंदर, वातै गढि गढि बानत।
सुनहु 'सूर' छवि अति अगाध गति, निगम नेति जिहि गानत।।2310।।