स्यामा तू अति स्यामहिं भावै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


स्यामा तू अति स्यामहिं भावै।
बैठत उठत, चलत गौ चारत, तेरी लीला गावै।।
पीत बरन लखि पीत बसन उर, पीत धातु अँग लावै।
चंद्राननि सुनि, मोर चंद्रिका, माथै मुकुट बनावै।।
अति अनुराग सैन संभ्रम मिलि, संग परम सुख पावै।
बिछरत तोहिं क्वासि राधा कहि, कुंजकुंज प्रति धावै।।
तेरौ चित्र लिखै, अरु निरखै, बासर बिरह नसावै।
'सूरदास' रस-रासि-रसिक सौ, अंतर क्यौ करि आवै।।2579।।

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