मन मन पछितायौ रहि जैहे -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


मन मन पछितायौ रहि जैहे।
सुनि सुदरि यह समौ गए तै पुनि न सूल सहि जैहे।।
मानहुँ मैंनमजीठ प्रेमरँग तैसैही गहि जैहै।
काम हरष हररै हरि अंबर देखत ही बहि जैहे।।
इते भेद की बात सखी री कत कोऊ कहि जैहै।
बरत भवन खनि कूप 'सूर' त्यौ मदन अगिनि दहि जैहै।।2580।।

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