सौति धरौ यह जोग आपनौ, ऊधौ पाइँ परौ।
कहँ रसरीति, कहाँ तनसोधन, सुनि सुनि लाज मरौ।।
चंदन छाँड़ि बिभूति बतावत, यह दुख कौन जरौ।
सगुन रूप-जु रहत उर अंतर, निरगुन कहा करौ।।
निसि दिन रसना रटत स्याम गुन, का करि जोग भरौ।
नासा कर गहि ध्यान सिखावत, बेसरि कहाँ धरौ।।
मुद्रा न्यास अंग आभूषन, पतिब्रत तै न टरौ।
'सूरदास' यहै व्रत मेरै, हरि पल नहिं बिसरौ।।3551।।