उलटी रीति तिहारी ऊधौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग सारंग


  
उलटी रीति तिहारी ऊधौ, सुनै सो ऐसी को है।
अलप बयस अबला अहीरि सठ तिनहिं जोग कत सोहै।।
बूची खुभी आँधरी काजर, नकटी पहिरै बेसरि।
मुड़ली पटिया पारौ चाहै, कोढ़ी लावै केसरि।।
बहिरी पति सौ मतौ करै तौ, तैसोइ उत्तर पावै।
सो गति होइ सबै ताकी जो, ग्वारिनि जोग सिखावै।।
सिखई कहत स्याम की बतियाँ, तुमकौं नाही दोष।
राज काज तुम तै न सरैगौ, काया अपनी पोष।।
जाते भूलि सबै मारग मैं, इहाँ आनि का कहते।
भली भई सुधि रही 'सूर', नतु मोह धार मैं बहते।।3550।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः